महाभारत हरिवंश भाग २ | Mahabharat Hari Vansh (part - Ii)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंध्याय ] # भाषादीका-सहित # (१६ ) श्रद्धेयाः शारत्रज्ञानवहिष्कता। दा स्मिकारते भविष्पन्ति दशील- कुतूंहला; ॥ १० ॥ तदा बिचलिते धर्म जना- शेपपुरस्कृता! । ; शुभान्येबायरिष्यन्ति दानसत्यसमन्बिता! ॥ ११ ॥ सपभंक्षो पसंगप्तो निर्ुणों निरपत्रप: | भविष्यति तदा लोकस्तत्फपायस्य | लत्ञणम्‌ ॥१२॥ बिप्ाणां शाश्वतीं हत्ति यदा वर्शावरा जना। । | प्रतिपत्स्यन्ति दृत्त्यथ तकपायस्प- लक्षण ॥१३॥ फपरयोपसदे | 4 लोके ज्ञानविद्यापणाशने । सिद्धि स्पल्पेन झालतेन यस्पन्ति गिर पर्कृता। ॥ १४ ॥ भहायुद्धं महानादं भह्ाषपे पह्ामय्त । भविं- है पति युगे ज्ञीसे तत्कपायर्य लक्षणस्‌ ॥ १५ ॥ पिप्रुपाणि ? रक्तांसि सनान! कर्यंवेदिन। । पृथिवीश्॒पभोक्ष्यन्ति युगांते सप्॒ः | नात्तिक होंगे ॥ ६.॥.तदात्व ( पतंपानकाल ).पें ही भ्रद्धा रखने बाले, शात्रक्रे हानसे शुन्प, दस्भी और बाद तथा शीलमें आश्रय | ऊँ-करने वाले होंगे ( अर्थात्‌ उस समय धमवाद भी दुलेभ होगा, ॥ उसके आचपरणफी ते वात ही वया १ ) तब धर्मक्रे चिंचलित हेने / पर ( कोई )( विष्णुश्मरण आदि ) शेष पर्मोसे युक्त दान और ! सरपसे युक्त पुरुष शुभ ( दया ) आदि कर्मोक्मे. ही करेंगे ११ उस समय संसार सबभक्ी अजितेन्द्रय, गुखरहित और निललेज्ज शैजावेगा, यही कलुपका लक्षण है॥ १२ ॥.जत्र ब्राह्मणोंकी | हत्तिके। ब्ाह्म॒णोंसे उत्तरते हुए. वणे वाले आजीविकाके लिए | ग्रहण करने लगेंगे, तब ( पूरे ) फलियुगके चिन्ह जाने॥१३॥ “३, णवे ज्ञान ओर विज्ञानंके नह करने बांसी फलुपतासे संसारमें | “अइंबेंदी होने लगेंगी, उसे समय ज्ञान ( शारत्रीय-बोध ) ओऔरे विधा. ( आत्मंदर्शन.) से रहित पुरुष, थोड़े ( त्पाग ) से सिद्धि ४ पा जगा करंगे॥ १४७-॥ युगक्रे ज्षीण होने पर मदहाययुद्ध महानाद ; ६ प्रहावषों परहामय होगा, यह कप!यका लक्षण है॥ १४ ॥ केलि- £ घुगक आने पर शक्तसं ब्राह्मणोंका रूप धारण -कर लेंगे और न्कसंचतकचकका शच्छ पक जरा उपका एस धच7 २ पक ए आफ इ क यन्‍कायफ पड़ छ पक पा पल.




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