पुरवैया के नूपुर | Puravaiya Ke Noopur

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Puravaiya Ke Noopur by देवराज दिनेश -Devaraj Dinesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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में नियति, भगवान्‌ दोनों से रहा झूठा उछल रहे हें यह मनुज को रौव दे भूठा, पंगु दुनिया से न मेरी निभ कभी पाई-- है बहुत क्षमता मगर तुम में निभाने की ! शवित है तुममें मुझे अंपना बनाने की ॥ रूप देखा, रूप का संसार भी देखा, रूप वालों का घिनौना प्यार भी देखा अति मथुर मुस्कान अधरों पर सुखा डाली-- हूँ तुम्हें चिन्ता उसे फिर से जिलाने की ! शवित है तुममें मुझे अपना बनाने की ॥ _>नीड़ के निर्माण में सहयोग में दूंगा, प्यार का तुमको नश्षीक्ा रोग में दूँगा, साधना की शक्ति लेकर भक्त की प्रतिमे--- हैं तुम्हारी चाह पत्थर की गाने की | शवित हूँ तुम में मुझे अपना बनाने की ॥ यदि मुझे फिर गगन की छहरें बुलायेंगी, विजलियाँ भी कर इशारे भुस्करायेंगी, सह सकूँगा किस तरह प्रिय मान मे उतका--- छोटने पर क्या सजा दोगी रुछाने की ? शक्ति हैं तुममें मुके अपना बनाने की ॥ पुरतरैया के नूपुर




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