राजस्थान के कवि | Rajasthan Ke Kavi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नई कविता की उपलब्धिया हैं। केवल मिथवो प्रतीका और बिग्बोी का
मवीन प्रयोग ही नहीं, बल्कि उसने वतमान काव्य को एक सवथा नई दृष्टि दी है,
ठहराव की स्थिति को तोडा है, भ्रभिव्यक्ति न पा सकने वाली झनुभूतियों को अभि-
व्यक्ति दी है। डा० नरेद्ध मोहन वे अनुसार इसमें” जीवन का साधारणता का
महत्व हैं, लघुता स्वीकार है औौर अ्रभिजात्य का प्रस्वीकार ।? नई कविता ने
कविता को विशाल ब्यापकता भ्रदान की हैं ग्रौर सतरा व बहूरो से कही महत्वपूण
व्यक्ति को माना है। डा० नामवरसिह के शब्टो मे नई कविता ने हमारी काव्य-
भाषा को समृद्ध करने म महत्वपृण योग दिया है । कुल मिलाकर नई कविता ने
समग्ररूप से टम एक नया और परिपक्व काव्य बांब दिया है जिसके द्वारा हुदथ और
बुद्धि की पूववर्ती विच्छिनता समाप्त हुई । ? यह सच है कि हटय श्र मस्तिष्क
का, भावनागो और तक का ऐस! सामजस्य पहले कभी नहीं हथ्रा ।
इसी के साथ नई कविता की अपनी कमिया या सीमाए भी हैं। कुछ
सीमाझ्रो का डा० इजनाथ मदान ने उल्लख कया है। गद्यता इसकी सबसे बड़ी
सीमा है जिसने इसकी लग को श्रस्त व्यस्त कर रखा है । इसकी क्थनी श्रौर क रनी
में ग्रभी श्रतर है। एक ओर बडी सीमा है । वह यह कि नई कविता स्मरणीय
नही है । इसी कारण इसे कही बिना पुस्तक या डायरी के नहीं ले जाया जा
सकता। भअ्रत्यधिक वक्तव्यबाजी, स्रेमबाजी, बडबोलापन और भ्रति नवीनता व
आग्रह से इसे क्षति पहची है। नई कविता कही फुटकर कविताओा को ही विधा
बनकर न रह जाये । सशक्त लम्बी कविताग का ग्रभी अभाव है !
५ २८ ८ ८
राजस्थान का वतमान हिंदी काव्य झ्रापवे हाथो में देते हुए मुझे
गयवे का भनुभव हो रहा है यद्यपि मैं पृण ग्राश्वस्त हें कि यह काय मुभसे कह।
बेहतर कोई श्रय कर सकता धा। शाय”ट इसे सम्पन्न करते का झागे बढ़कर
मैंने जो बीडा उठा लिया वह ग्राज सोचता हू भेरा विवेक नहीं बत्कि दुस्साहस
ही था। खेर। राजस्थान साहित्य अकादमी न 1964 में श्री नद चतुर्वेदी के
सम्पादन में राजस्थान के फवि नाम से ऐसा ही एक सकक्लत निकाला था जो
झभावार में इससे बहुत बड़ा और प्रठत्तर बवियां की भीड को;लिए हुए था। ठोक
*ॉ++++++- एऋफसडसटससकसफफफनक्डक्ऊलससनइकइअन्ॉान+ तन लत तन...
1 स्वतन्त्रता रजत जयातो प्रभिनदन ग्रन्थ, ' तई कविता स विचार बबिता
तक पृ० ४३१
2 डा० सामवरसिह नई कविता, “उपलब्धिया झौर विम्ब विधान” पृ ४०
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