सत्यासत्य निर्णय | Satyasatya Nirnay

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Satyasatya Nirnay by लाला मुसद्दीलाल जमीदार - Lala Musddilal Jamidar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६४ ) खहत ज्यादे प्रम करना चाहिये इस वात का अभिमान न करे कि में कुलीन है पशिडत धनवान बलवान थी जन आदि २ किसी प्रकार का अहंकार न करना चाहिये हमेशा धमे में रह रहनना ओर सब को उपदेश देकर सत पथ पर लाना यही धमेज्ञ जीवों का पहात्म्य हे ओर शास्त्रों के अनुसार यथोचित खान पान सम्बन्ध रिश्तेदारी और सत्य परम का सेवन करना चहिये यह नहीं कि भृष्टभुष्ट होजावे ओर इसी तरह शुद्र जातियों को भी अपने २ आचरण पर दृढ़ रहकर विरुद्ध अभिमान न करना चाहिये क्योंकि जो २ अपनी मयांदा के तरीके पर रहेगा वही नफ़ा उठादेगा जो इसके बिरुद्ध (खिलाफ) करेगा वह ईश्वर की आता भंग करने से नक का अधिकारी होगा ॥ टों शांति: शांवि: शांति; ०43 पलानता-- «५ “7+े लक ज०-.) ३० कक.




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