स्वास्थ्यरक्षा | Swasthyaraksha

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Swasthyaraksha by बाबू हरिदास वैध - Babu Haridas Vaidhya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूमिका । शोर इस को प्रशंसा में घोड़ा बहत लिंग कर सुक्ते छतज्नता पाश में बाँघ लिया । यद्द बात मैं भी भांति जानता हाँ, कि विद्यानांने मेरे जैसे अल्पन्न लेखक को पुम्तक की प्रशंसा केवल सेरे उत्सा् बढ़ाने के ले दो की थी । इधर यह इुना, उधर निन्दी-प्रेमी पाठकों ने इसे ाथों डाथ खसेद कर सेरा टिल श्रीर भी चढ़ा दिया । इन्ही सब वातांका यह्त नतीजा है, कि अब सखास्थ्यरक्ता” विलकुल नये पढ़ दड् में उमी तहत आकार से छपकर फिर तथ्यार चुई है। क्षमारें कितने को ग्राकोंन, इस प्म्तक में, अनेक रोगों पर सरन और सुलभ नुसखों को श्राकश्यकता बताई. ; कितनों ने इसमें ग्नो-मस्वन्थी विषयों को कसी बताई. और कितनांने यह लिखा कि आपने बालकों को स्वास्थ्य-रक्ता के विषय में कुछ न लिख कर गृरइन्साफीं को है। अतः: मैंने इस मंस्करणमें, उपरोत्ता तीनों विषयों पर,एक छोटो सो पुम्तकर्में जितना लिखना सुनासिव ममका उतना लिख कर, उस कमी को प्रति कर दी है। इसीसे इस घार २९४ छरठों की जगनक्ष ३९७ पृष्ठ चोगये हैं। अर्थात्‌ पदिले से परष्ठ- मंख्या डाढ़ो होगयो है । नुमखे भी ऐसे लिखे गये हैं जिनसे निर्धनों फे उपकार कौ पूरी सम्भावना है। छपाई और कागज भी पहलेसे अच्छा कर दिया है। इतना सब करने पर भी दास नहीं बढ़ाया | इसने श्राशा है, कि विद्वान समालोचक अर हिन्दी-प्रेसी सल्दन सेरा उत्साइ और भी बढ़ायेंगे और सेरो अत्यन्त अल्पन्नता कौ वजह से इममें जा दोष और ल.टियाँ, फिर भी, रद गई डॉगी उनके लिये मु समा वरेंगे । एक बात कइनेंसे रहो जातो है, कि जिस चिकित्सा चन्द्रोदय”” नाप्रक पुस्तक्र को पाठकों को सेवा में प्रसुत करनेका मैंने इस पुस्तकके प्रथम संस्करण कौ भूसिकामं वादा किया था, वच अब सब तरछसे तय्यार है और हिन्दी को दुनियामें बिलकुल दो नयी चीज़ है। उसके इधर जलदौ प्रकाशित न डोमेका कारण केवल हिन्दी




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