संवाद संभव | Samvad Sambhav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
452 KB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यह तो न सोचा था
न जाने ये क्या हुआ मेहँदियों को तनहाई में
राचेंगी इस कदर यह तो न सोचा था!
महक मुस्कराहटों की यूँ समा गई नज़रों में,
रूठोगे इस कदर यह तो न सोचा था।
पी गये नज़रों से इतना-कुछ बेहिसाब,
बहकेंगे इस कदर यह तो न सोचा था।
लड़खडाए पाँव जो देहरी को लॉघकर,
लौटेंगे इस कदर यह तो न सोचा था।
धूप की कतरनो का सरोकार सूरज से
भूलोगे इस कदर यह तो न सोचा था।
बरसों बरस अकेले
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