संवाद संभव | Samvad Sambhav

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Book Image : संवाद संभव  - Samvad Sambhav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यह तो न सोचा था न जाने ये क्या हुआ मेहँदियों को तनहाई में राचेंगी इस कदर यह तो न सोचा था! महक मुस्कराहटों की यूँ समा गई नज़रों में, रूठोगे इस कदर यह तो न सोचा था। पी गये नज़रों से इतना-कुछ बेहिसाब, बहकेंगे इस कदर यह तो न सोचा था। लड़खडाए पाँव जो देहरी को लॉघकर, लौटेंगे इस कदर यह तो न सोचा था। धूप की कतरनो का सरोकार सूरज से भूलोगे इस कदर यह तो न सोचा था। बरसों बरस अकेले 27




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