टेढ़े मेढ़े रास्ते | Tedhe Medhe Raaste

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बावी थे । र्रे दयानाथ ने एक महीना पहले वकालत छोड़ दी थी । वैक में उसकी कमाई के पाँच हजार रुपये थे । दयानाथ का माप्तिक खर्च पाँच सौ रुपया महीना था। इस हालत में पाँच हजार रपए जमा से वह उसी हासत में दस महीने तक़ वाम चला सकता था। इसके वाद क्या होगा ? दयानाथ की समझ मे ने आ रहा था। उसे बंगला छोड़ देना चाहिए, उत्ते कार हटा देना चाहिए, उसे एक साधारण हैसियत के मनुप्य को तरह रहना चाहिए ! इसी शहर में ऐसे भी गा हैं, जो बारह रुपया महीने में वीवी-वच्चों के साथ ज़िन्दगी बिताते हैं। पर नहीं ! बारह रुपया महीने पर जीवित रहना !--उफ ! वह तो पशु का जीवन है ! नहीं, पचास रुपये में ! यह भी असंभव है। सौ रुपये महीने ? हाँ, सो रुपये महीने मे बह आराम से रह सकता था । पच्रीस रपये महीने का मकान, पचोस रुपग्रे महीने घर का खर्च ! पद्रह रपये महीने में लड़कों की पढ़ाई, पंद्रह इपये मद्दीने में कपडे और मुतफरिक खर्च और बीटा रुपये महीने जेव-सर्च । और नौकर ? पत्नी को जेव-खर्च ? मेहमानदारी ? सवारी का किराया --सौ रुपये महीना भी बंगफी नही हैं ॥ मकान पचीस का नहीं, बीस का; मुतफर्िर में पंद्रह नहीं, दस; और जेव-सर्च में बीस नहीं, दस। बीस रपये महीने को बचत *** राजेश्वरी भोजन करके आ गई। उसने दयानाथ के पास जाकर कहा, “कव तक इस तरह ठहलते रहीगे ? चलो, सोओ भी ! बिता करने की कया वात ? दयानाथ ने चौंककर राजेश्वरी को देखा। राजेश्वरी ने फिर कहां, “भवा यह भी कोई बात है ? ठुम अपनी तदुरुस्ती बर्बाद किए देते हो 1” दयानाथ ने करुण स्वर में कहा, “देखो--मैं जो कुछ करने वाला हूँ, उससे नुम्हें तकलीफ होगी । शायद हम लोगो को यह बँगला छोडनता पड़े, कार बेचनी पड़े 1! ह दयानायथ का हाथ पकडकर सीचते हुए राजेश्वरी ने कद्ठा, “मुझे जरा भी तकलीफ नही होगी । मुझको उसी में सुख है जिसमे तुमको है। अरे, मुख-दु दोनों ही सहने के लिए तो आदमी पैदा हुआ है।” दंयानाय में सतोष की रहरी साँस ली, “राजो--जो कुछ कह रहा हूँ, उसको करने के लिए मैं विवश्ञ हूँ 1” सुबरह जब दयानाय सोकर उठा, वह अपने में एक विचित्र प्रकार की स्फ्ति का, साहम का अनुभव कर रहा या। दिने भर वह कांग्रेस का काम-काज करता रहा; शाम के समय करीव पाँच बजे वह मोटर पर वेटकर उन्नाव की ओर चल पड़ा। कु न जिस समय दयानाय उच्नाव में अपने पिता के बंगले में




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