कुरु कुरु स्वाहा | Kuru Kuru Swaha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“कमरा नम्दर पाँच, रिमक्रिम गेस्ट हाउस, सीता भवन बी, भ्रीच कंप्डी,
वार्डन रोड, वम्बई 1 मैंने तंजिया जदाब दिया ।
“कुछ भौर भसलियत--तुम्हारा नाम 27
“भनोहर श्याम जोशी 17
“कुछ प्र भसलियत---यहाँ पान कहाँ से कंसा लगवाते हो रंगे-दाँत जासूस | ”*
असामनेवाले पनवाड़ी से, सादा पत्ती, सिकेला टुकड़ा प्रौर पिपरमेण्टवाला
मगही |”
बह पनवाड़ी की दुकान पर गयी। मैं देख रहा था कि वह उससे वतियाते
हुए मेरी भोर इशारा कर रही है ।
बापस लौटी दो उसके हाथ में पान का एक पड़ा था भौर कागज की एक
घेल्ी ।
मैं पान निकालकर खाने लगा तो उसने मुर्के रोका | थंली में से टॉफियाँ
निकालकर बोली, जिज्ञासु वालक, जब में छोटी थी भौर कोई भी प्रच्छा काम
करती थी तब पिताजी मुझे टॉफी देते ये। सच बोलना भो भच्छा काम है। तो
यह लो चार टॉफियाँ भपने नाम, पते, पेशे भौर पान के बारे में सच बोलने के
लिए । भ्रव बालकराम, दो टॉफियाँ भौर बची हैं। ये दोनों, एक ही बढ़ा-सा सच
घोलने के लिए । उसने तुम्हें जायूती का काम किस निर्देश के साथ सौंपा है ?”
“मैं किसी का जासूस नहीं 1” जोदीजी ने कहा।
दोनों टॉफियाँ उसने वापस थली में डाल लीं, “भ्रच्छे बच्चे मूठ नहीं बोलते । ”
मैं बच्चा नही हूँ।' जोशीजो ने कहा 1
परे सामने भी नहीं ?” उसके स्वर में इतनो प्रोतिकर चुनोती थी कि
साहब भपन भी डामलॉगवाजी भूल गये !
उसने मनोहर का गाल थपथपाया | एक टैक्सी रुकवायी शोर कहा, “जासूस
बालकराम, फिर मिलेंगे, किप्ती खूबसूरत मोड़ पर, भगर तुम उस त्तक पहुँच सके
“ताम-पता मालूम कर चुकी हो, मैंने कहा, “जब उत्त भोड़ पर पहुंच जाप्री
तो एक कार्ड डाल देना कि वहाँ का मौसम कसा है ? ”
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