गल्प - मंजरी | Galp-manjari

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Galp-manjari by श्रीयुत सुदर्शन - Shriyut Sudarshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बूढ़ी काकी ७ शक पेड पृड़ियां मिलें ?--यद्द विचार कर उन्हे रोना आया कलेजे में एक हक सी उठने लगी । परन्तु रूपा केलमय से उन्होंने फिर मौन धारण कर लिया । बूढ़ी काकी देर तक इन्ही दुम्खदायक विचारों मे डूथी रहीं । घी झौर मसालों की सुगन्धि रद रदकर मन को आप से चादर किये देती थी । मुंह में पानी भर भर आता था | पूड़ियों का स्वाद स्मरण करके हृदय में गुद्युदी होने लगती थी । किसे पुकारू झाज लाडली बेटी भी नदीं आई । दोनो छोकड़े सदा दिक किया करते हैं। झाज़ उनका भी कहीं पता नददीं । कुछ मालूम तो होता कि क्या बन रहा है बूढ़ी काकी की करपना में पूड़ियों की तस्वीर नाचने लगी । खूब लाल लाल फूली फूली नरम नरम होगी । रूपा ने भी भांति मोयन दिया होगा । कचौरियों में झजवाइन झौर इलायची की मद्दक झा रदी होगी । एक पूरी मिलती तो ज़रा हाथ में लेकर देखती । क्यों न चल कर कड़ाह के सामने दी बेटूं। पूड़ियां छुन छुन कर तैरती होगी । कड़ाह से गरम गरम निकाल कर था में रखी ज्ञाती डोगी । फूल हम घर में भी सूंघ सकते है परन्तु बादटिका में कुछ और वात होती है। इस प्रकार लिखणुंय कर के बूढ़ी काकी उकड्डूं बैठ कर हाथों क बल सरकती हुईं बड़ी कठिनाई से चौखट से उतरी और घीरे धीरे रंगती हुई कड़ादद के पास जा देठीं । यहां झाने पर




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