राजस्थान के अभिलेख | Rajasthan Ke Abhilekh
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.79 MB
कुल पष्ठ :
254
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अभिलेखों में उपलब्ध :होता हैं । इस प्रकार जैन धर्म के सम्बन्ध-ों श्रत्यन्त महत्व-
पूर्ण सुचनाएं जैन भ्रभिलेखों में प्राप्त हो जाती हैं । जैन श्रभिलेखों का प्रकाशन
मुनि जिन विजय द्वारा प्राचीन जैन लेख माला में, बाबू पूर्णंचन्द्र नाहर द्वारा
जैन लेख संग्रह, श्री श्रगरचन्द्र नाहटा द्वारा 'बीकानेर के जैन शिला लेख श्रादि में
प्रकाशित हुए हैं । इस प्रकार जौन श्रभिलेख पर्याप्त मात्रा में प्रकाश में लाये जा
चुके हैं तथा निरंतर लाये जा रहे है ।
राजस्थान में हिन्दू धर्म भ्रत्यघिक प्रवल रहा है । स्थानीय अभिलेखों में
प्रारम्भ से हो हिन्दू धर्म के श्रस्तित्व का उल्लेख मिलने लगता हैं । घोसुण्डी शिला-
लेख में, जो राजस्थान में प्राप्त प्राचीनतम शभ्रभिलेखों में से एक है, हिन्दू ध्म का
उल्लेख है । इत अभिलेख में अण्वमेघ यज्ञ व वासुदेव (भगवान विष्णु ) तथा नारा-
यण वाटक के निर्माण का उल्लेख हुआ हें ।१* इनके उपरान्त प्रत्येक युग में शव
एवं वेष्णुव दोनों मतों के अ्रभिलेख प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं ।
वष्णव भ्रभिलेखों में वासुदेव ** , कटभरिपु १९, म्रारि?”, श्रादिवराहू *
वराह ११ द्ादि नाम प्राप्त होते हैं । इन्ही नामों से अ्रभिलेखों के श्रारम्भ में
श्रभिवादन किया गया हैं । इसी प्रकार शैव अभिलेखों में भगवान शिव को श्भि-
'वादन:किया गया हैं । उदाहरसणार्थ संवत् 742 वि. के मण्डोर झभिटोख में श्रभिटोख
का आरम्भ 3$ तम: शिवाय” से किया गया हू 12९१ इसी प्रकार शंकर घट्टा अधि-
लेख के श्रारम्भ में भी शिव की वन्दना की गयी हूं ।१ ९१ कल्याणपुर लेख में “32
'स्वस्ति 'प्रणम्य शंकर कर चरण मनः शिरोभि:” शब्दों से शिव की स्तुति की गई
हूं । १०४ शिव के लकुलीश स्वरूप का प्रचार भी राजस्थान में रहा है । मेवाड़ प्रदेश
' में लकलीश मत का पर्याप्त प्रचार रहा तथा मारवाड़ में भी इस मत के अस्तित्व विष-
यक प्रमाण मिलते हैं । नाथ प्रशस्ति--एकलिंगजी में प्रशस्ति का झारम्भ “3 नमो
लक्लीशाय” से हुमा है ।* ० इसी प्रकार बुचलकला अभिलेख में परमेश्वर (शिव)
के मन्दिर के निर्माण का उल्लेख हुम्रा है ।11?* इस प्रकार के हजारों उल्लेख हमें
विष्णु एवं शिव के सम्बन्ध में प्राप्त होते हैं जो इस तथ्य के सूचक हैं कि चिष्ण॒ एवं
शिव की उपासना यहां प्रचुर मात्रा में होती रही है ।
शिव के साथ शक्ति की उपासना भी यहां होती रही है । इस विषय में भी
प्रभिलेखीय साक्ष्य पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हू । संवत् 646 ई. (संवत्ू 703 चि.]
' के सांमोली अ्रभिलेख' १४ में भ्ररण्यवासिनी देवी के मन्दिर के निर्माण का उल्लेख
'हुम्रा हैं। संवत् 1056 के किणसूरिया अभिलेख में कल्यायनी, काली, भगवती
श्रादि देवी स्वरूपों की स्तुति की गयी है । * ९४ इसी प्रकार जगत में स्थित देवी
के मन्दिर के अभिलेखों . में भी देवी की स्तुती की गयी. है 1१९ आ्ोसियां के
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