क्रान्तिकारी जैनाचार्य | Krantikari Jainacharya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १९ )
चह बोला, “प्रतिमा के साथ रक्ष्मी जा रही दे क्यों कि
जिनदृत्त सूरि उसे खेंच रहे हैं। प्रतिमा की अभी श्रतिष्ठा
नहीं हुई” । शान्ति सूरि ने प्रातः काल अपने श्रावकों को कहा
कि सिन्ध देश के श्रावक आए हुए हैं, इन्हें घर के जाकर
भोजन कराओ । श्रावक भोजन करने छगे और शान्ति सूरि
ने रूई में लिपटी हुई प्रतिमा की अज्जनशलाका से प्रतिष्ठा कर
दी! सिन््धी भ्रावर्कों को इस बात का पता न लगा । प्रतिमा
ले कर जिनदत्त सूरि के पास आगए। सूरि ने कहा, “तुम
ठगे गए, प्रतिमा की प्रतिष्ठा हो चुकी है”। श्रावकों के
आग्रह करने पर सूरि ने दुसरा उपाय बतलाया। &8 भटनेर
& भटनेर या हनुमानगढठ बीकानेर रियासत का प्रसिद्ध
नगर है | सन १९२० में में वहां गया था। यहां के किले में एक
बढ़ा प्राचीन जैन मन्दिर है, जिस में विक्रम की चौदहवीं पन्दरदवीं
इताब्दी की धाछुमयी प्रतिमाएं, विद्यमान हैं | परन्तु पूजा का उचित
प्रबन्ध नहीं | एक श्रावक के पास प्राचीन ग्रन्थों का भारी संग्रह
है। एक बार धर अहग्ज़ेण्डर कनिंगूहम भी यहां आए थे | उर्हों
मे भी भण्डार देखा था, बल्कि ताड़पत्र का अनन््थ ले भी गए।
सन १८७४ में डा० बूलर ने भी यह मण्डार देखा था | उस में
८०० ग्रन्य थे, जिन में से पांच उन्हों ने प्रतिलिपि करने को लिये।
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