क्रान्तिकारी जैनाचार्य | Krantikari Jainacharya

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Krantikari Jainacharya by बाबू राम जैन - Babu Ram Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १९ ) चह बोला, “प्रतिमा के साथ रक्ष्मी जा रही दे क्‍यों कि जिनदृत्त सूरि उसे खेंच रहे हैं। प्रतिमा की अभी श्रतिष्ठा नहीं हुई” । शान्ति सूरि ने प्रातः काल अपने श्रावकों को कहा कि सिन्ध देश के श्रावक आए हुए हैं, इन्हें घर के जाकर भोजन कराओ । श्रावक भोजन करने छगे और शान्ति सूरि ने रूई में लिपटी हुई प्रतिमा की अज्जनशलाका से प्रतिष्ठा कर दी! सिन्‍्धी भ्रावर्कों को इस बात का पता न लगा । प्रतिमा ले कर जिनदत्त सूरि के पास आगए। सूरि ने कहा, “तुम ठगे गए, प्रतिमा की प्रतिष्ठा हो चुकी है”। श्रावकों के आग्रह करने पर सूरि ने दुसरा उपाय बतलाया। &8 भटनेर & भटनेर या हनुमानगढठ बीकानेर रियासत का प्रसिद्ध नगर है | सन १९२० में में वहां गया था। यहां के किले में एक बढ़ा प्राचीन जैन मन्दिर है, जिस में विक्रम की चौदहवीं पन्दरदवीं इताब्दी की धाछुमयी प्रतिमाएं, विद्यमान हैं | परन्तु पूजा का उचित प्रबन्ध नहीं | एक श्रावक के पास प्राचीन ग्रन्थों का भारी संग्रह है। एक बार धर अहग्ज़ेण्डर कनिंगूहम भी यहां आए थे | उर्हों मे भी भण्डार देखा था, बल्कि ताड़पत्र का अनन्‍्थ ले भी गए। सन १८७४ में डा० बूलर ने भी यह मण्डार देखा था | उस में ८०० ग्रन्य थे, जिन में से पांच उन्हों ने प्रतिलिपि करने को लिये। एशफुशा5 ए्रढाबधंणशए 40 घाढ एणगारटाणा बधवे शिल्लफ्वाार त॑ सैपरलंद्या छिताडद्पों वतो्तक्वापाल बंध उधता& सवाहत ४५ 3. हे, ७०७९४, (०1८४७, 1878. 99. 120, 149.




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