अज्ञानतिमि भास्कर | Agyanatimi Bhaskar

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Agyanatimi Bhaskar by श्री आत्माराम जी - Sri Aatmaram Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अज्ञानतिमिरक्षास्करे, १७ प्रयत्न करा व्यर्थ नहीं हुआ, जबतक छोगोंको अज्ञान दशाहै तवतक इस भ्रम जालसें कवी नहीं निकलेंगे. * दुसरी यह वात हीके ब्राह्मणोंकी शौकन बहुत होगई है, छोग अखाड़ेके बावांकों, मंदिराक साथु गुरुके शिख भाइ राम सिंहके कृके शिष्य भ्राईयोकों, और अनेंकृमत्‌ और वेपवार्लोकों जिमा- ते है, परंतु ब्राह्मणोंकों नही, कितनेक ब्राह्मणाका नाम प्स्‍्मे , ओर पोष कहने लग गए है, यह ब्राह्मणांकी बहुत दुखदायक है. 'इनकी इसमें बडी हानि है, तथा ब्राह्मणोंकों य्हण गिननेंकी रीती आती है, तिसंकी कालपव ठहराके छाखों रुपक हजारों व- पेसिं कमाते ख़ाते है. ब्राह्मण छोग अपने काममें बृंडे हुश्यार ये क्योंकि किसीक/ वाप सरज़ाता है, तब तिसका बेटा शास्या छोटादिक अनेक वस्तु ब्राह्मणोंकों देता है और ऐसे मनमें मा- नता है कि जो कुच्छ न्ाह्मणोंकों देउंगा सो सब सवगेमें मेरे पि- ताक मिलता है. इधर दीया और उधर मरनेवा्लेके पहुंचा और तुरत जमा खरच हो जाता है. इस लिखनेका यह प्रयोजन होके जब बहुत धूर्त ज्ञानि ओर जबरदस्त होते है ओर प्रतिपक्षी अ- समर्थ कमसमजवालछे होते है तव कोई अपने सतलवकों भूछता नहीं, कोई सत्यम्ार्गी परमेश्वरका भक्तही स्वायथत्यागी परमार्थ संपादक होता है, पाखंडी वहुत होते है इस वास्ते अवभी पाखे- डी लोगोकों उचित हैकि अपना छाऊूच छोड देंवें ओर छोगों- को प्वरमजालल्‍में न गेरे, सृत्यविद्याका प्रठनपाठन करे, लो- गेंके अच्छी बुद्धि देवें, हिंसत ओर जूठे शाख्रोंकों छोड देंवें, कमा करके खावे, छछ कपूठ न करें, से जीवॉपर सामान्यवु- द्वि रख्खें, दुखाकों साहाज़ देवे, काली, कंकाली, मैरव प्रमुख हिंसक और जुडें देवोंके। मानना छोड देवें, सत्य शीर संतो- प्से चलें तो अबभी इंस देशके लोगोंके यास्ते अच्छा हे,




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