अधर तुम्हारे स्वर मेरे | Adhar Tumhare Swar Mere
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
767 KB
कुल पष्ठ :
121
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जगदीश चतुर्वेदी - Jagadish Chaturvedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)किसी ने कहा, प्रीति चंचल उपा है,
लजीली, नही मन-गयन में रुकेगी !
किसी ने कहा प्रीति तीखी कंटीलो,
हृदय बेध देगी, नहों यह भुकेगी !
तुम्हें पा चुका हूं, स्वयं खो गया हूं,
कहू क्या क्षणिक से, डरू' क्यों चुभन से ?
तुम्हें चूम कर चाद की ओर देखा,
हटानी पड़ीं फिर निगाहें गगन से !
2
हृदय चीर कर रूप मन में भरा है,
निवासी किसी के जगत का नहीं हूं !
हृदय को चुराता, हृदय को लुटाता,
जहां रूप हैँ, प्रीति है, में वही हूं !
न चातक गगन का, न बंदी कमल का,
लगा हूं नही मैं, किसी की लगनसे !
तुम्हें चूम कर चांद की शभ्रोर देखा,
हटानी पड़ीं फिर निगाहें गगन से !
झाठ
User Reviews
No Reviews | Add Yours...