अधर तुम्हारे स्वर मेरे | Adhar Tumhare Swar Mere

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Adhar Tumhare Swar Mere by जगदीश चतुर्वेदी - Jagadish Chaturvedi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जगदीश चतुर्वेदी - Jagadish Chaturvedi

Add Infomation AboutJagadish Chaturvedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
किसी ने कहा, प्रीति चंचल उपा है, लजीली, नही मन-गयन में रुकेगी ! किसी ने कहा प्रीति तीखी कंटीलो, हृदय बेध देगी, नहों यह भुकेगी ! तुम्हें पा चुका हूं, स्वयं खो गया हूं, कहू क्या क्षणिक से, डरू' क्‍यों चुभन से ? तुम्हें चूम कर चाद की ओर देखा, हटानी पड़ीं फिर निगाहें गगन से ! 2 हृदय चीर कर रूप मन में भरा है, निवासी किसी के जगत का नहीं हूं ! हृदय को चुराता, हृदय को लुटाता, जहां रूप हैँ, प्रीति है, में वही हूं ! न चातक गगन का, न बंदी कमल का, लगा हूं नही मैं, किसी की लगनसे ! तुम्हें चूम कर चांद की शभ्रोर देखा, हटानी पड़ीं फिर निगाहें गगन से ! झाठ




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now