तरणि - तरणी | Tarani - Taranee
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'तराणि-तरणी
सपने
जिन्दगी मे
उलझने इतनी, फिर भी
मन बुनवा है,
धागे- धागे सपने।
जब भी हातगा तनहा
टूटे सपनो के
घाव सहलाता,
मन ही मन देखा करता,
प्र
कल के सुहान सपन॑।
सपनो मे उलझी
बीत चली जिन्दगी
प्राणो के तार साँसा मे उलझे
और मन ढूँढता है, » [+
उलझनो मे भी सपने। 6
कैसा ये मन।
केसी है उधेडबुन
कौन समझाये?
इतने अपने लगते है?
ये सपने।
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