तरणि - तरणी | Tarani - Taranee

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Tarani - Taranee by वीणा जैन - Vina Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'तराणि-तरणी सपने जिन्दगी मे उलझने इतनी, फिर भी मन बुनवा है, धागे- धागे सपने। जब भी हातगा तनहा टूटे सपनो के घाव सहलाता, मन ही मन देखा करता, प्र कल के सुहान सपन॑। सपनो मे उलझी बीत चली जिन्दगी प्राणो के तार साँसा मे उलझे और मन ढूँढता है, » [+ उलझनो मे भी सपने। 6 कैसा ये मन। केसी है उधेडबुन कौन समझाये? इतने अपने लगते है? ये सपने।




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