आत्मबोधः | Atmabodh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २२ )
तीत होते हैं, खाभाविक आत्माविषे कोई धर्म
है नहीं;'और अश्रुतिनें जो आत्माकी अन्नमयादि
रुपता कही है सो अरुंपतीके न्यायकरिके मे
क्षयस्त॒के दिखाने विपे तांप््य है; काहेतें की,
पंचकोशनकी उपाधीतें आत्माकों जीवरुपता है
ओर श्रुतिका यह तात्पर्य नहीं है की, आत्मा
अन्नमयादिक पंच कोश है, और आत्मा एक है
कोश अनेक हैं, कोश उत्पत्तिविनाशवाले हैं,
आत्मा अविनाशी है, कोश पर्मवाले हैं, आत्मा
संपूर्ण धर्मनतें रहित है, तो आत्मा कोश केसे हो
सकता है ? सो दृषध॑तंतें कहते हैं. जेसे समावक-
र्कि स्फटिक शुद्ध हे परंतु नीलपीतादि वस्रके
योगकरिके नीटा,पीछा प्रतीत होता है, स्वाभा-
विक रफटिक नील पीत हैं नहीं ॥ १४ ॥
कोश और आत्माकी एकरूपताका जो अ-
भ्यास तिस अभ्यास करिके आत्मा कोशरूप ग-
तीत होता है, तिन कोशनतें आत्माका विवेचन
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