पुस्तक - वर्गीकरण कला | Pustak Vargikaran Kala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वर्गोक्रण का सिद्धान्त पथ १५
अन्तर्गत हमी बस्तुएँ भा जाती हैं। इस प्रकार इस इछ से विकास की एक
परापरा स्पष्ट प्रकट होती है --
द्र्ब्य
अमभौतिक
मौतिक
शरीर
मजीवघारी
जीवधारी
प्राणी
अचेतन
चेतन
पञ्चु
झविचारशीन
विचारशील
मनुष्य
सुकरात
प्हैदे
अन्य मनुष्य
पाराध
अत इम इस निष्कप पर पहुँचते हैं. कि तफशास््र में वर्गोकरण! शग्द
का प्रयोग एक पद्धति के लिए होता है जिसमें एक एक चीश को अनुकूल
फ्रम में रणा जाता है। इन एफ एक यस्तुओं एवं मार्वों का उनकी उमा
नता फे आधार पर समूह यनायां जाता ऐै। उनके याद उन समूहों को
उसकी अपेत्ता बड़े समूह में रवा जाता है। इस प्रकार रूमश' बड़े एमूह
बनाते हुए यह विभि व पूरी ही 'ठादी है लव कि श्क ऐसा उमूह बन
लाता है शिसफे अन्दर्गद समी व्यक्ति या भाव समा जाते हैं।
गृदेमाजन्? शयद् का प्रयोग ऊपर को विधि से निल्कुल्त उल्दी विधि फे
लिए. किया जाता हे। इसमें एक हमूइ कुध छोटे उपछमूहों में वादा जाता
है। इस गटने का आधार कोई गुण या विशेषता होती है | इस प्रकार
जो ठपसमृह गन जाते हैं उनका फिर उनसे छोटा समूह ठसी प्रकार बनाया
जावा है। इश् प्रकार यश विधि दद तक चलतो दे जय सक कि विभाजन
करना अषध्य्मद न हो जाय या उठकी जरूरत न समही जाय!
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