एक सड़क सत्तावन गलियां | Ek Sadak Sattawan Galiya

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Ek Sadak Sattawan Galiya by कमलेश्वर - Kamaleshvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यह मन की जतन, कहां ले जाएगी तुझे ! यह हाय छुसे राख के छोड़ंगो। यह ह्वाय न होती तो दूं आाज फलता) किदी कच्चे 3 आय में बैठशर गाता, कोई छुतता | इसी के से फूल नहीं; काजल सभी भायों से रसधार धरती! धूल के उडते' हुए ववंडर नहीं, गोवर लिपि ढंदी घरती होती “'महावर रंगे पैर होते ओर लिखना से भरी हुपन की दौवारे। हर तीज-त्योहार होता, रास-रंग होता। जीने, मरते बाला कोई साथ होता । पर तू अकेला मरेगा““अनजाने आदमियों के बोच। किसे अपना कहेगा ? किसी दिव मोटर में बैठान्वैठा मर जाएगा, कोई पेट्रोल छिड़ककर जला देगा या भागते-भागते किसी घहराती नदी भेघड़ियाल, कछुओ के दीच फेक आएगा यही होगा डरे साथ | एक दिन ैं सुन ५ तेरी खबर मुझ तक आएगी सरनाम ! उस दिन घी के दीये जलाकर रात-भर दिवाली मनाऊगी | तेरी उस दिन की युशधी*“कोडियों की तरह चमकती हुई आएें भुल नहीं पारी । किठना बड़ा एहसान किया था मुझ पर ) शरम नहीं आई थी कहते हुए-- 'सोदा खतम । मगन मिस्त्री नहीं ले सकता इस औरत को।' कौरत को ) जिश्वर से भौरत थी मैं तेरे लिए! औरत समझकर बहेमान कर रहा था तेरी मैं कोई नही थी। बाजार समझा था। “जब तकये रुपया पूरा नही चुका देगा, तव तक तू रख इसे ।” कहते हुए तेरी जीभ नहीं गिर गई ।'*'ढाल-तलवार मागता है''कामिनी को वचाएगा'** मेहरा! 2 बाहुरी को आें कोध से जलते-जलते न जाने क्‍यों सत्नांसी हो गईं'** जँसे आंध ओर घुएं के दोच झिलजिलाती हुई तरल-सी चिकनी सहरियां / जलती हुई लकड़ी से सुनपुना कर बची हुई एकाघ रम-दृद क्रिस ऐश मे धन४लाकर निकले आई | तप्त रफ-बूद, जिसे आय की जलन झ्षण-मर में सोद लेती है'“सचमुद्द स्व तेरे झारम हुआ“ तू, सशनाम नृ 1 सवा“ बरदार**“सरताज”““किसने रखा था ताम तेरा ? “पर केवल रा पर“ देस ये ताज जिम दिन गिरेगा, उसी दिन के देखने के लिए फ्डा 5 2 श के झ्हूं। बौरत कहता हैन मुन्न। तेरे कारन औरत हुई'“'नहीं को रैसीडी घरवाली होकर उ बी ममझन से होकर चैन से मर बाती। तू बवनी समझ से घर-




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