बृहत् पराशरहोरा शास्रम् | Brihat Parasharahora Shastram
श्रेणी : अन्य / Others
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
636
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका है
४-पू० ६५३ मे प्रब्नोत्तर मे प्रतिमास १ लग्न ही कशनानुसार सभव है।
ये केवल दिग्दर्शन मात्र है, मनुष्यसे भुल होना असभव नही कहा जा सकठा, फिर किसी एक
वात को लेकर इतना बतगड नहीं बनाना चाहिए, प्रत्युत उसका अन्वेषण करके समाधान
करना चाहिए। प्रथम भूमिका से तो आप लिसते है कि -ध्री प० अमुकजी के पास हे दक्षिणा
देकर नकल प्राप्त दी और अन्त मे कुछ और ही लिखते है कि-इधर उधर से सण्डश प्राप्त
करके और उसका जोड़ तोड करके निर्माण क्या, सैर जो भी हो प्रयत्त स्तुत्य है और
सराहनीय है, थ्रीमानजी बुछ स्पष्टोक्ति के लिए क्षमा करेगे।
जन्मेष्ट काल के शोधन के शोक हमको, ज्योति शास्त्र प्रेमी श्रीुमारसाहब तुधारनाथ
मिश्र, सुपुत श्रीराजा कन््हाईलालजों बहादुर के प्राचीन ग्रन्थ संग्रहालय में सुरक्षित
'बू०्पा०्हो०शा० वी अति प्राचीन प्रति मे मिले, वेवज़ मूल श्लोव थे हमन भाषा टीका
तथा उदाहरण सहित इस ग्रन्थ में यथावत् सथुक्त किये है। इसके लिए हम दुमार साहब के
आभारी है। बम्त्रई मे प्रकाशित पुस्तक से अधिक विस्तृत कोई प्रति देखने मे नही आई। काशी
से प्रकाशित पुस्तक मे भी आध्यन्त श्लोक स० ४००१ है जब विन्मूलशान्ति आदि अनेक
प्रकीर्णक जो कि होराशास्त का विषय न होकर सहिता का विपय है, उनका सग्रह किया गया
है। क्योकि-
'प्रहाणाश्वैव भावाना बल्लावल-विवेकत ॥।
दरशादिना फल यत्र होराशास्त्र तदुच्यते ॥!
भ्रद्यपि उन्होने व्यर्थ का सग्रह करपे ९७ अध्याय कर दी है तथापि बम्त्रई की प्रकाशित पुस्तक
में ५७८१ शोक है, जो किन््याशी वी प्रकाशित से १७८१ श्लोक अधिक है, प्रति पाद्य विषय
का सबोच और विस्तार तथा उत्तरखण्ड मे अनावश्यक संग्रह प्राय दोनों गे ही है, विन्तु
एाप्ठी की भे अविषय का संग्रह और बम्बई की पस्तक में शास्त्रीय विषय या सप्रह है इस
होराशास्त्र के ही कारक मारक विचार को तथा गुलिकादि विचार वो सेकर जैमिनीय सूत्र
वी रचना हुई अस्तु यह स्वतन्त विवेबना वा विषय है। वे वन बाझब मारक विद्यार वो तथा
प्रनयोग्रों को लेकर लथु और मध्य पाराशसी का निर्माण हुआ। हमसवो वम्दई वी प्रराशित
पुम्तेव से अधिव भाग अब तक नही प्राप्त हुआ है, यदि किसी के पास्त हो तो देने को इृपा
करेगे।
एक विपय विवेचनोय और है, वह है जन्मवालीन मूर्य के राश्यादि ने समान शाश्यादि के
ममय वर्ष गणना यी परिष्ादी जिस सकलता वो लेशर 'ताजिर नीटकण्ठी आदि ग्रत्य
बने, “इसका विचार होराशास्प म॑ नही है' यह तहने मे भी चत्र समता है, यद्यपि वर्षचर्या
“मासचर्पा मे दिग्दर्शन मात्र है तयापि प्रधान तथा जन्मबाव को लेकर ही विभार तिया गया
है। इस विपय का तात्यातिक यूक्ष्म विद्यार साम्प्रतिर परश्मात्य ज्योतिर्विदे ने दृष्टि योगों
(8970९) वे माध्यम से बहुन अच्छा निया है उस विषय वे जिनामुओ को अभितापापूर्ति के
निमित अग्रेजी में ही मक्षिप्ण (उदाहरण सहिन) प्रदार आगे दे रहे है -
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