षटखंडागम खंड 4 | Shatkhandagam Khand 4

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Shatkhandagam Khand 4  by डॉ हीरालाल जैन - Dr. Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€५, ६७ घ्प ण्ष 9 १०२ १०४ १०६ १०्ण ५१२ 98 १३० १३११ 39 १३४ ( १एगवियप्पो . -वर्गणओ .. होगा, क्योंकि -अविभागव्डिच्छेदेहि' ज्सि २ प्रतिषु « सेगः संदिदु ..' स््श्ण््े *तदित्थ ३७२ -बंधद्वाणादो ' - तदिय विसरिणाणि - विभागपडिच्छेदपरूएवमवणा “छलोगडइाणाणि ९ णवरबंद्वाणाणि त्ति -मावदो वत्तीए' | ७ एगोलीयबहुचं ११ ११ रैप ६ ४ तुलाणि/ भमिव पारभमिव एक स्पद्धेकवृद्धि ' पड़िमुवगत्तादो । फुदयंतराणि 'इाण॑तंराणि' पि परूवणा भी प्ररूपणा घुट्ठ परिसेसयादो , १५ असंख्यातभागवृद्धि ७ अविभागपडिच्छंद ण॑ , ३ ) एगवियप्पो . “वग्गणाओं ह होगा, सो भी नहीं है, क्‍योंकि अविभागपडिच्छेदेहि जिसके २ अ्र-पआाप्रत्योः सेस? संदिद्वीए ्श्२छ तदित्थ ३०७२ : “चबंधइाणादो तदिय विसरिसाणि एव्सविभागपढिच्छेदपरूवणां -लोगडाणाणि | . णबब॑घद्वाणाणि (१) त्ति “मावावत्तीए च* | एगोलीवहुत्ं तुल्लाणि' हर भमिय पारमिय एक अंकसे कम स्पर्द्धकबृद्धि ' बड्िमरवगदच।दो । | फद्यंतराणि' इाण॑ंतराणि पि अंतरपरूवणा भी अन्तरम्रूपणा सह परिसेसियादो संह्यातभागवृद्धि अविभागपडिच्छेदाणं -




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