सन्मति - सन्देश | Sanmati Sandesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घने [ १६ 3५८ 0.+>०2५2०७८५3२3५३५-+३२०तभ कट ल्‍ज सर रजल्‍ जी 0 बल जा ३२ जय तक बुटापा नहीं सताता, जय तक ब्वाधियाँ नहीं उल्ती, जब तक इच्द्ियाँ दान, श्रश के पही होती तय तक प्रम॑ का झ्राचरण कर लेता चारिए । 2३ जो प्रथिक विना पायेव लिये ही लम्बी यात्रा पर यल पड़ता दै, वह आरा छाता हुआ भूल तथा प्यास से पीड़ित होकर द्र्यत दुष्खी हाता है 3 4 इणा प्रवार जो मनुष्य विना घर्मोचरण किये परवीक जाता है बह भी यहाँ नाना आदिच्याधिर्ण़ से पीड़ित दोकर श्रय॑त दु सी होता दै । ३्घ. ढ जो प्रभिक लग्बी यात्रा में शत साथ पायेय लेकर चनतता है, वइ आग चलकर भूस और प्यास स तनिक भी पीड़ित न होकर अस्पन्द छु्ी शेता है। 2४च>०+3त >> + पट २>र५स से ।




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