महजब नहीं सिखाता | Mazahab Nahin Sikhata

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Mazahab Nahin Sikhata by सत्येन्द्र शरत - SATYENDRA SHARAT

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भी संकोच नहीं होता । पंचायत बैठ गई, तो रामघन मिश्र ने कहा--अव देरी क्या है ? पंचों का चुनाव हो जाना चाहिए। बोलो चौधरी, किस-किसको पंच बदते ही? अलगू ने दीन भाव से कहा --समर््‌ साहु ही चुन लें । समझू खड़े हुए और कडककर वोले--मेरी ओर से जुम्मन शेख जुम्मन का नाम सुनते ही अलगू वौधरी का कलेजा घक्-धक्‌ करने लगा, मानो किसीने अचानक थप्पड़ मार दिया हों। रामघत अलगू के मित्र थे। वहू बात को ताड़ गए। पूछा--क्यों चौधरी, तुम्हें कोई उच्च तो नही ? चौधरी मे निराश होकर कहा--नहीं, मुझे क्या उद्ध होगा। अपने उत्तरदामित्व का ज्ञान बहुधा सकुचित व्यवहारों का सुघारक होता है। जब हम राह मूलकर मटकने लगते है, तव यही ज्ञान हमारा विश्वसनीय पय-प्रदर्शक बन जाता है । पत्न-सम्पादक अपनी शान्ति-कुदी में बैठा हुआ कितनी धृप्टता और स्वतन्त्रता के साथ अपनी प्रवल लेखती से मन्प्रिमण्डल पर आक्रमण करता है; परन्तु ऐसे अवसर आते हैं, जब स्वय मन्त्रिमण्डल में सम्मिलित होता है मण्डल के भवन में पय धरते ही उसकी लेखनी किंतनी मर्मज्ञ, कितनी विदारशील, कितनी न्यायपरायण हो जाती है, इसका कारण उत्तरदामित्त का ज्ञान है। नवयुवक युवावस्था में कितना उद्दड रहता है 1 माता-पिता उसकी ओर से कितने वितित रहते है। वे उसे कूल-कर्लंक' समझते हैं, परन्तु थोड़े समय में परिवार का वोझ सिर पर पड़ते ही वह अव्यवध्यित-चित्त, उन्मत युवक कितना धंर्यशील, कसा शान्त-चित्त हो जाता है, यह भी उत्त रदायित्व के ज्ञान का फल है। जुम्मन शेख के मन में भी सरपच का उच्च स्थान ग्रहण करते ही अपनी जिम्मेदारी का भाव पैदा हुआ । उसने सोचा, मैं इस वक्‍त न्याय मौर धर्म के सर्वोच्च आसन पर बैठा हू । मेरे मुह से इस समय जो कुछ निक- लेगा, वह देववाणी के सदुझ्च है--और देववाणी मे मेरे मनोविकारों का मजहूव नहीं सिखाता / २२३




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