पाप की छाया | Pap Ki Chhaya

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Pap Ki Chhaya by नानक सिंह - Nanak Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तड़प उठा हूं । जहा तऊ मेरा बस चलेगा मैं तुम्हारी मदद करूंगा, तुम बिन्ता न करो क्रो औरन ही कही जाने की बात स्लोचो। यदि मेरा भाग्य अ्रच्छा हुआ तो . शायद तुम्हे भी मेरी दफा पर विश्वास हो जाएगा। मुंह से कहने से कया होता है ।” “सेठजी | मैं इससे वेखबर नही हूं। मैं पहलों दिगाह में ही पुरष को पहचान जाती हूं ।” कहती-कहती बह चुप हो गई। प्रेम इस चुप्पी का कारण ताड़ गया । उसने जमता का हाथ झपने हाथ मे ले लिया । जमना ने झ्रांखें भुकाली भौर भपनी वाह भ्रेम के गले मे डाल दी। तिरछी नियाह से उसके चेहरे को निहारते हुए वह अपने दोनों हाथों से उसके गाल थपथपा कर बोलो, “परन्तु, मगर भाष अब सच मुच ही मुझपर इतनों दया करना चाहते हैं तो पहले मुझे इस बाजार से बाहर निकाल ले जाइऐ। मेरे शरोर का रोम-रोम यहां के लोगों श्रौर यहां सदा झाने घालो से घृणा करता है। भले ही मेरा मकान याबार से इस ओर है, फिर भी*।***० ८३४ यह सुनकर प्रेम को अपने मित्र द्वारा दी गई सलाह का ध्यान हो गापा। वह बोल, “जमना ! जहा तुम इहे, मैं तु वही ले चनूगा। यदि तुम गर्मी के दिन पहाड पर विताना चाह्ठों ठो मैं इसकी तैयारी करूं ? ” “कं आपके साथ हू ! जहां प्र ले चरेंगे, चलूगी ।” “भग्रच्छा, फिर मेरा विचार है इस छापा की सर की जाए ।/* भोजी बनते हुए जमना दोलो, “विझाला, गुरद्वारे की 2”? “नहीं मेंसे भोली जमना! दर्द एक पहाड़ी शहर का नाम है, बढ़े जिया कांगड़ा में है।” “ग्रच्छा, तो कब चलेग्रे ३? ५ “बस, आज ही घर दाहर दि्यय सेनज््यादा परसों 17 प्रेम भाज मन ही मव अपदे भाग्य तथा देवता-समान अपने मिद गोपालकिंह की सराहा कर रह या, जिसको कृपा से खासों में ढेवरे वाली 'सुन्दरता और प्यार को देवी ने क्षणों में ही अपने आपके कर दिया था। - जब प्रेम जमना के मझन के उतने लगा तो रात श्र




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