हिन्दी साहित्य का इतिहास आदिकाल और भक्तिकाल भाग - 1 | Hindi Sahity Ka Itihas Bhaktikal Aur Aadikal Bhag - 1

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Hindi Sahity Ka Itihas Bhaktikal Aur Aadikal Bhag - 1  by दयानन्द श्रीवास्तव - Dayanand Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) उतहा*--अप्ताहहू विहृसिय वजराइ। मम्रशमिन्ु_ मस्मामिस बाई ॥| फुट्टिरि हिमडा मास बसंत । विरूपई् राजस पिकक्शत कस्तु। सली दुक्क बोसरिया मभा। संभक्ति भरत किम दुसमुणई ॥ दीस पंथ घिर णोवद होइ | छाउ पियंठ बिसेसठ सहु कोइ ॥ भणपास ( धतपाछ ) की हृथि संबिसयततकहा ( भविष्पदत्तकपा ) इस प्राम्परा की एक सौर महत्वपूर्ण क्रांब्य-रक्षता है| प्रस्तुत कृति सोक-गाष)जों कौ काब्यास्मक मनुचेतमा के खाबार पर पद्धगित है । अपक्रप्त काम्प विधा का पूसरा शप 'परमात्यकाह्ट' 'योगरासारं और 'साजयपम्म दोहा में मिलता हैं! इतके रघनाकार हैं जोशंयु ( ११वीं धताम्दी) । शम्शिह की हुति 'पाहुड़ दोहा एस स्बर्म की एक अन्प कृति है । अपक्र शा काप्प-पारा का तीसरा सप बौद्धदोहा एवं “घर्याप्रों' मे मिलता हैं, (द्िन्दी छाहित्य पृ० इ० पृ० ६४८)। एस प्रकार 'सरह कष्ह, छुपा इत्पावि की हृतियों इस काब्य-बारा के अन्तर्गत जाती है परम्तु छाकी रचषमास पष्वर्ती अपश्रद्य की हैं जिनका गिश्सेयश आगे के पृष्ठों में किया सया है। मपश्र क् में मुक्तक काष्यस्तवश्पों की भी ष्यापक्ता मिस्ती है । विपम की इृष्ठि से उन्हें 'बीर' और 'प्रभम” मुक्तक श्यों में गिभावित करते हैं। हेमचन्त के व्याकरण में संकड़ित दौहों में इत बोतों श्पों की उपसस्बि हो छाती है। उनमें होक-जौबत की उदात्त बीर अनुचेता और श्र गार-संबेल्गा प्रतिबिस्वित गिखतो है। इन दोह़ों का संकशन हेमचन्द्र मे छोकजीबत से किया है । ऊदा ७-- हरि लश्या बिउ पैमेणइई विम्हर पाड़िउ क्वोठ । एबहि राहप्रमोहर्ड थ॑ भावद त॑ ड्रोउ ॥| हर को अगिध में शृत्य कतएी हैं कोग निस्मम में पड़े इस प्रकार राजा के पयापतें की दो अभिप्तापा हो बह हो' प्रणम की क्द्ेशिकाओं की सौरदर्मपूर्ण अभिम्प॑ण्जमा प्रस्तुत संदर्म की जिभ्ेपता है। बह केजेइ परादीसु पिउ जकिमा हु करीषु। वालिय मदर छरागि डिएं सम्बम पह सीसु ॥ 'बरदि सौमास्य से मैं मपसे प्रिम को था जाऊँ तो जपूर्?भ कार्य कश्ंयी अबक्त




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