छत्रपतिसाम्राज्यम् | Chhatrapatisamrajyam

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Book Image : छत्रपतिसाम्राज्यम्  - Chhatrapatisamrajyam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ रू ) वर्षा का समय है। हता इस रही है। कवि का कपत--औम प्रोर नगरों के मार्ग में ववण्डर (तेजवायु) स्वेच्छापूवंक विचरण करता, बादलों से भयभीत-सा घारो शोर से उठकर प्राकाप्त की घोर प्रस्थात कर रह! है, सौर इस प्रवार यह बवष्डर एक लुष्ठक (बुटेरा )के समान थाल पथिक की घाँतों में घृत्त कॉतकर उप्तके वस्त्रो का प्रपदरश वार रहा है। इतना हो नहीं एक स्थान पर पर्वत की उच्च घचोटियाँ, सघन वृक्षावली भौर निर्मेर भादि, कवि बी दुडिट में शिवराज फे लिए प्रबल दुर्ग सदुध प्रतोत होते हैं--'पवंत वो ऊँची-नीची धरती, उमबी गुफाएँ, नाता प्रकार को लताप्ों धौर वृक्षों से सुझोभित बन, पर्वत के उच्च शिक्षर से प्रवाहित द्ोनेवाले मिर्केग, ये सभी भाषके लिए सुदृढ़ दुएं के रूप में धौर श्र के लिए दाधा-स्वरूप स्थित हैं ।-- (प्रक ७५२) | ऐसे भौर भी घनेद स्थत मादव भें है जहाँ नास्यकार पूर्ण हपेंरा बविं के रूप में बत्पना भौर भाव से उद्वेधित हो उठा है । प्र तिमौरय चित्रण के प्रतिरिक्त माटबफ़ार शो गिभ्रण में सरबंपा सफप है। प्रहति-विव्रण भौर शौम दोनों से पूर्ण पह छद दतिए- आब्यायवोध्ण रदिम विगप्रततविभिष्वालमापादयद्धि-- हँल्ममद्मिंदिताई: स्तनिव्पदरदूजे गं व॑ म।घोपयद्धिः 1 पारासंपातमरत प्रतिमटविपि ब्यादुलोप्यष्रान्त, प्रातराल्तों स्लेध्चसेपेजैलघर निवहैंदु गंधजः रमस्तात ॥ -प्रंश ७४ दुर्ग धारो प्लोर में स्तेच्छ-ऐना द्वारा पिर गया है॥ बृद्दा रूपो हुपारे सनतित प्रतिषक्षियों बी तलवार में बाट डासे गए हैं। जंगे दादइस प्रपनों पनरी पत्तियों से गूयं को ढक लेते हैं, उसी प्रदार मुगतों मी देना हे दृधारा ऐेनापति पिरा हुप्रा है, बाइसों भी भीषण गरजता है झमार उन्हें सगादों से। विदलठी गदेदूएं प्वनि हुइए दो गर्पाहल हर रही है । हृएारे मंनिदर उसी प्रभार व्यादुन हैं जंते बाइसों गे फिरती उतपादा हे बृर्शो हे समूह हो जाते हैं।




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