श्रीभाष्य भाग - 2 | Shri Bhashya Bhag - 2

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Shri Bhashya Bhag - 2   by ललितकृष्ण गोस्वामी - Lalitakrishn Goswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| हृश॥ ). जो यह कहा कि - स्थूल सुक्षत्मामक जडवेततमय जगत परमात्मा का शरीर हो ही नहीं सकता, यह कथन, वेदान्तशास्त्र के सम्यक ज्ञान न होने से मनः कल्पित कुतक का फल है । सारे ही वेदांतशास्त्र स्थूल सूक्ष्म चेतन अचेतन समस्त को परमात्मा का शटीर बतलाते हैं । बाजसेनयी काण्व और भाध्यंदिव शाखा के अन्तर्यामी ब्राह्मण में जैसे-“जो पृथ्वी में स्थित हैं पृथ्वी जिनका शरीर है? इत्यांदि से पृथिव्यादि समस्त अचिद्‌ वस्तु तथा “जो विज्ञान में स्थित हैं विज्ञान जिनका शरीर है “जो आत्मा में स्थित हैं आत्मा जिनका शरीर है” हत्यादिसे चेतन वस्तुओं का प्थक-पृथक निर्देश करके, उनको परमात्मा का शरीर बतलाया गया है। सुबालोपनिषद में भी इसी प्रकार “जो पृथ्बी में संच- रण करते हैं, पृथ्वी जिनका शरीर है' तथा “जो आत्मा में संचरण करते हैं, आत्मा जिनका शरीर है” इत्यादि में उसी प्रकार चिदर्षिद -की .. समस्त भ्वस्थाओं को परमात्मा का शरीर बतलाकर “वह सर्वान्तर्यामी .. निष्पाप दिव्य देव एक नारायण हैं” इत्यादि से उन परमात्मा को भूतों का अच्तर्यामी बतलाया गया है। द .. _. स्म॒रन्ति च “जगत्सव शरीरं ते यदस्बुवैष्णवंकाय:” “हत्सव॑ वै हरेस्तनुः” तानिसर्वाणि तदवपु: “सोइसिध्याय शरीरा- . हुवात्‌” इत्यादि। भूतसूुक्ष्मत्वात्स्वाच्छरीरादित्यथ:। लोके च॑ शरीर शब्दों घटादिशब्दवदेकाकारब्रब्यभियत वृत्तिमसासादितः . कृमिकीठपतंगसपनरपशुप्रभु तिष्वत्यंत विलक्षणाका रेषु दव्येष्वगौणः : प्रयुज्यमानों दृश्यते। तेन तस्य प्रवृत्तनिमित्त व्यवस्था- पनं स्व प्रयोगानुगुण्येनेव कार्यम्‌ त्वदुक्त॑ थे “कमफलभोगहेतु:” इत्यादिक प्रवृत्तिनिमित्त लक्षण न सब प्रयोगानुगुणम्‌, यथोक्त ष्वी- श्वर शरीरतया5भिहितेषु पृथिव्यादिष्वव्याप्ते: 1. .. “पारा जगत वुम्हारा ही शरीर है, जल विष्णु का शरीर है” यह सब हरि का शरीर है। “उन्होने संकल्प करके अपने शरीर से” इत्यादि : स्तुति वाक्य भी उक्त तथ्य की पुष्टि करते हैं । लोक में शरीर शब्द, ... घर आदि शब्दों की तरह, अनेक प्रकार के द्रव्य संघातमय, कृमि-कीट-




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