वसुनन्दि - श्रावकाचार | Vasunandi - Shravakachar

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Vasunandi - Shravakachar by पं. हीरालाल जैन सिद्धान्त शास्त्री - Pt. Hiralal Jain Siddhant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय ज्ञानपीठ काशी संव०-पुण्यश्लोका माता मूतिदेवी की पवित्न स्मतिमें .. तत्सुपुत्न सेठ शान्तिप्रसादजी द्वारा -: संस्थापित ज्ञानपीठ मूतिदेवी जेन-ग्रन्थमाला इस ग्रन्थमालामें प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी, कन्नढड, तासिल आदि प्राचीन भापषाश्रेमें उपलब्ध आगमिक, दार्शनिक, पौराणिक, साहित्यिक श्रौर ऐत्तिहासिक आदि विविध-विषयक जैन साहित्यका अ्रभुसन्‍न्धानपूर्ण सम्पादन ओर उसका मूल ओर यथासंभव अचुवाद आदिके साथ प्रकाशन होगा। जैन भण्डारोंकी सूचियाँ, शिलालेख-संग्रह, विशिष्ट विद्वानोंके अध्ययन-अन्थ ओऔर लोकहितकारी जैन-साहित्य अन्य भी इसी ग्रन्थमाला .में प्रकाशित होंगे। ५&-६३७--+--- ग्रन्थमाला सम्पादक--[््रिकृत और संस्क्ृत-विभाय।] डॉ० हीरालाल जैन, एम० ए०, डी० लिद्‌० डॉ० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्याय, एम० ए०, डी० लिख्‌० ) #३:३:३:९:१:२:३:१:/३:३:६:/३:२:२:२/३:३:२:३४/५ ग्राकृत ग्रंथांक 32 ९:३/४:४:३६:९:५/९/ ९: ४! ९४ ९:३१ ६१:९:९/६:९/९:९? प्रकाशक--- अयोध्याप्रसाद गोयलीय, मन्‍्त्री, सारतीय ज्ञानपीठ काशी « दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस ४ मुद्रक-देवताप्रसाद गहमरी, संसार प्रेस, काशीपुरा, बनारस « - 1३:६:३:५/९ 7९१३:९:२:३:२१२/:२:३:२:३:८३:३२:२:३:३:२:९/१९:९:२/४४३:/२:२:३/२/३:३१६५/२/५:९:२१२/६:९/२:२/३११:३/३/२/९/९४/२/९ ८३१९४: ९: १४ स्थापनाब्द जे फाल्गुण कृष्ण ६ | विक्रम॑ स॑ं० २००० सर्वाधिकार सुरक्षित 1 - बीर नि० २४७० है। ; १८ फरवरी १६४४




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