गीता विज्ञान भाष्य | Geeta Vigyan Bhashya

Geeta Vigyan Bhashya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फिल्टर इमरान रन नं रन सन + नमन मनन न नम समान तरस मनन +«+++५ ५5 मम ऋनक++«कननन> ७५५4५ ++3 ०५3०५ ५००..५.. ना पारा जलबटड 22:१० ह्रशाते:लका।2#:8::द0न-अशए फाछ१७ ५४१72 याए एप पन०: 2 एए 28५ ए पट /वतकाका: पध-आइशाक 5 >पादक25: 1९ से व । 44७2० ताधदातव आपदा /काक:घतात 2 काका तय कब हे ३2००३ 2252 ३१० /९५/९३५ ८४०९३ ४धी5/ आधी कमा3ध ५2 ५० ९३3७ ५ ५७ 1.० 5 ४५५ २६८ एक ओरे हैं, एवं १८ पवात्मक महाभारत दूधरी ओर है । दोनों की तुलना में महामा। रत का दी आसन ऊँचा मानना पड़ेंगा । हमारी दृष्टि में इस उच्चासन का विशेष कारण है शतपथ- ब्राह्मण | यह जाह्मण बह्मणम्रस्थों में आूर्व है । यह वेद का ग्रन्तिमग्रन्थ है । इसी लिए इस में संक्षेप से सभी तत्वों का निरूपण हुआ है | इस की भाषा भी संस्क्ृतभाषा से मिलती जुजती है। वेदिक साहित्य पर पूर्ण अधिकार प्राप्त करने के लिए शथफ्थ का अथ से इलि तक अध्ययन कः लेना पय्याप्त है। न केवल इस में पदार्थ वेद्या क! हो विश्लेषण हुआ है, अपितु पदार्थविद्या के साथ साथ इस में इतिहास, शिल्प, राजनीति,घरम्मनी ति आदि सभी विषयों का समावेश हुआ है । इस अपूव ग्रन्थ के निम्माता हैं भगवान्‌ याज्ञवर्क्य ' “कृत्तिका स्वाप्तीआदधीत | एता ह वे पाच्य दिशो न च्यवन्त” ( शत० आा० २ कां २॥ ३ । 2 इस वचन के अनुसार हम शथपथ का निम्माणकाल लगभग भद्रामारत के समकालीन मानने के लिए तय्यार हैं। शतयथ कहता है कि-“कुत्तिका नत्षत्र में अग्स्याध्यान करना चाहिए। क्योंकि यह नक्तत्र पूर्व दिशा को नहीं छोड़ते!” । इस कथन से विदित होता है कि शतपथकाल में सप्तनक्षत्रात्मक क्षुरि- काकृति कृत्तिका नक्षत्र पर ही अयनसम्पात था । परन्तु हम देखते हैं कि आज अयनसम्पात कत्तिका को छोड़ कर सन्‌ १६०० ई० तक ) लगभग ९० अंश ( डिग्री ) हट चुका है । गथ ही में ज्योतिगिणना के अनुसार यह भी सिद्ध विषय है कि एक अंश के हटने में लगभग १५ वर्ष लगते हैं । इस हिध्ताब से कृततिकासम्पातकाल सन्‌ १९०० से पहिले छगभग ४६६५ चार हजार नोसौ पेंसठ ) वर्ष पीछे जाता है ' यही समय महाभारत का ठहरता है । इसी आधार पर हम उक्त दोनों ग्रन्थों को ( मह्दा भारत एवं शतपथ्व को ) समकालीन नने लिए त्य्यार हैं| हां इस सम्बन्ध में यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि शतपथ ग्रन्थ शभारत से कुछ समय पहिले बना था, एवं महाभारत का निभाण कुछ समय पीछे हुआ था । का प्रत्यक्ष प्रमाण यद्वी है कि महाभारत में अ्रथ से इति पर्यन्त प्रमाणर्थलों में स्थान स्थान -इति शातपथी श्रुति!” “इति शातपथी श्रतिः” इत्यादि रूप से शतपथ के वचनों का लेख मित्रता है | यदि पाठक अवध नपूवक मह्ाभारतका आदि से अन्त तक अ्रध्ययन करेंगे श्श्८




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