विश्व धर्म परिचय | Vishv Dharm Parichay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९३) अन्ध पिश्वासी-- यह लोग ज्ञान, बुद्धि और विद्या से काम न जैते हुए फिसी भी बात, घटना, विचार या मनुष्य से प्रभावित होकर विश्वास की उस सीमा तक पहुँच जाते है जहाँ अपने आप सोचने, समभने और मनन करने के लिये कुछ भी बाकी नहीं रुता और ते वह इसकी श्रावश्यकता ही सममते हैं। बल्कि सममाये जाने पर घुरा मानने लगते हैं। यह ज्ोग 'प्रपनी हट और जिद से सच को भूठ भौर भृठ की सच सिद्ध करने में भाँति भाँति की थुक्तियाँ और उदाहरण दिया करते है। उनके सिद्धान्तों फो चाहे कोई भूठ, गलत तथा बुद्धि, हात और प्रकृति के विरुद्ध ही सिद्ध क्यों न करदे, परन्तु वह किसी दशा में भी अपने उत्तम सिद्धान्तों के राग अल्ापने में संकोच नहीं करते | ऐसे लोगों मे केवल अनपढ़ और गँवार ही नहीं हुआ करते चल्फि उनमे 'च्छे भ्रच्छे लिखे पढ़े, समझदार और योग्य व्यक्ति भी होते हैं। वह योग्य पुरुष दूसरी गहरी से गहरी और बारीक से बारीक बातों को गंभीरता से सोच कर तो हल कर देते हैं परन्तु धार्मिक सिद्धान्तों के सामने आते ही उनकी वह समस्त बुद्धि, ज्ञान और सममः बूक वेकार हो जांती है। इसका कारण यह है कि वह अपने धार्मिक सिद्धान्तों पर इस बुरी तरह से विश्वास जमाये हुये होते हैं कि उनके विरुद्ध उन्हें कुछ भी कहने का साहत नहीं हो सकता। इन ज्ञोगों में अधिकतर संख्या ऐसे भोले, अ्रनजान और बुिहीन लोगों की होती है जिनका समम बूक से कोई सम्बन्ध नहीं होता । पह हृदय और मत्तिष्फ के इतने दुबंश होते है कि जहाँ किसी चतञते-पुर्जे, घदमाश, धोखेवाज, लुटेरे और वहरूपिये आदि ने धर्म था मज़हब के नाम पर अपना उल्लू सीधा करने के लिये रूप बदलकर, सिर के वाल वढ़ा कर या मुंढवा कर, भस्म रमा कर, गेरवे था नीले कपड़े पहन कर गुर, पीर, मुशिद्‌, सिद्ध या ज्योतिषी इत्यादि बन कर दो चार मन्त्र, कविताएँ या गीत उनके सामने पढे और ईश्वर, देवी- देवता, अवतार-कर्त्तार, नवी या रसूल, पीर और ओऔलिया की प्रसशा करते हुये कुछ चिकनी-चुपढ़ी बाते की और वेथ-वेदी, हानि-लञाभ और स्वर्ग तथा सके इत्यादि के विपय में अपनी सम्मति प्रकट की, चमत्कार, सिद्धि, करामात, जादू, मन्त्र, तन्‍्त्र, ताबीज, गर्डा इत्यादि




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