सनत्कुमारचक्रिचरितमहाकाव्यम् | Sanatkumarachakricharitamahakavyam

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Sanatkumarachakricharitamahakavyam by श्री जिनपालगणि शिष्यलेश - Shri Jinapalagani Shishyalesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[२1] से अनेक जेनस अभिलेखो का भी सम्पादन किया हैं। उन्होने खरतरगच्छ का इतिहास भी लिखा है जिससे प्रतीत होता हैं कि जेन वाडमय का कितचा ग्रधिक परिचय उन्होने प्राप्त कर रखा है| उनके द्वारा सम्पादित वृत्तमोक्तिक नामक छन्द:शास्त्र के ग्रन्थ का प्रकाशन इस प्रतिप्ठान से ३ वर्ष पहिले ही हो चुका है। श्रतः उनकी इत. पूर्व उपलब्धियों के श्राघार पर, प्रस्तुत ग्रन्थ का सम्पादन भी अच्छा होना स्वाभाविक ही था। फिर भो मेने इस ग्रन्य की विद्वत्तापूरों भूमिका को जब श्राद्योपान्त पढा, तो मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि सम्पादक् महोदय ने जिस कार्यपद्ुता, और विद्वत्ता का परिचय इस ग्रन्थ के सपादन में दिया है वह पूर्वंसम्पादित ग्रन्थों से कही अधिक उच्चकोर्टि की हें । श्राद्ा हें यह नवयुवक विद्वान, अपनी साहित्य-सेवा से राष्ट्रभाषा को निरच्तर समृद्ध करता रहेगा । श्रन्त में महोपाध्याय विनयसागर ने ग्रन्थ की फोटोकॉपी को भेंट करने में जो उदारता दिखाई है, उसके लिये मैं पुत्र: घन्यवाद श्रपित करता हूँ । पौप शुक्ला पूरिमा, स० २०२४५ --फतहसिह जोघपुर




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