शककालीन भारत | Sakakalin Bharat

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Sakakalin Bharat by प्रशान्तकुमार जायसवाल - Prashantakumar Jayasaval

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जादीब परिचय और मौगोहिक स्थिति हृ उपबुंक्त धारझा के धतिरिक्त इमारे पास झ्त्य प्रमाश मी विचमान हैं थो शर्कों के श्रागमन स्थान को पूर्वी ईरान के सूमिप्रदेश में श्रव स्थित करती हैं | ऊपर हम इस उस्य की झोर संकत कर चुफे हैं कि बूदजियों के मुठभेड़ के कारश शकों छी करे शालाएँ इुश तथा उनके अगेड़ रक्तरों को श्ागे वखकर स्थापना हुई | जो लोग 'डी-पिन' में जा बसे बे उमके अ्रतिरि्त कुक ओर कबन्‍्रीशे झ्राकंशिगा और हूँ मिबाना की ओर बड़े | समवत उन्हीं को जस्टिन से रक्रीयणन की सेड़ा दी है। उनको खपैद से पाथव एवं गारमी राजकुछ ह्ाए, और इस यद्ार संपूर्श देक्िराक्लोज सपरिवार शक्कों की अपर में भरा या । जूक्षेतिंन का प्रीक राजझुक्ष श्रपनो एएकस6द के कारस स्व बाद ठया गुगल हो गया या | बह शक क्राऋ््मसण्णकारियों का रामना जे कर शक ।९ बारुतां पर अपना प्रमुष्व स्थापित कर शक शोर झागे बड़े। रास्त मै पाबब पढ़ते य॑ | ६० पू> ?«८ मैं प्रा राजा फ्राद विदीव भाराकापी हुआ | ठठके उत्तराधिकारी ब्रातबानत दिलीड़ (११८ १२३ ६० ९० ) स उतका कुछ कर झाहि देढर एक अरयातो शाति को स्वगस्मा की | किस्तु यह स्वतस्था झ्रदिड़ रितों तड़ ने बल सकी | बह भी पाँच शप बाद शक़ों हारा बुड़ में मार डाहा गण (९ एरस्‍स्ु उसका उछराधिक्रारी मम्दात दितीब ( (२३. पड हैं, हू» ) शक्तिशाली राजा हुआ । उसने उस मंद छत दे प्रपना प्रमुत्व स्पापित करके राकों को आग बढ़ने से रीझ दिक्क। रत राजत्य काल में उतका शवना रगरुवा रहा दि शड़ जमे आगे नहीं बढ़ सके । विशानों की ऐसो पारणा ह दि उपयु कस राजा के खश्लइल हैं ब्रयवा उसके परखात्‌ शक मारतीय सीमा का ओर बड़े । बए/ # १ एपिटोम हिस्थोरिड्ेस्स फ़िलिप्पिकेस्स पाप्पेई जोमि १९ | । रे, डा> मंगबतशरण उपाणाप, ध्रात्रीन माएत हा इतिहाड,५5 ३ चो७ हि> पा* ६० ११, १६ १६, ऋ८। हे




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