त्रिपदी | Tripadi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुरभि उत दोनो के आकर्षण का बिंदु थी। उसो को लेकर उनकी
मत्री पूर्ण होती थी। उसकी अनुपस्यिति में दोनों विचलित हो उठते थे 1
सुरभि की उपस्थिति मे दोनों यह बात उससे स्वीकार करते थे । उनमें से
एक कहता--'ओह, कल तुम्हारे विरह में शाम ही वेकार हो गई 1” कितु
शुकात पाकर उनमे से कोई भी उससे प्रेमनिवेदन नहीं कर डालता था ।
और सुरभि? उसको उन दोतों के ही प्रति समान आकर्षण का अनुभव
होता था । इसीलिए जब उनमे से किसी को देखती उसका मुंह उज्ज्वल
हो उठता, वह बोलतो--'ओफ्, इतनी देर वाद आना हो रहा है? यहा
अगोरते-अगोरते**च
इसी प्रकार उनकी दोस्ती तीन बरस पुरानी हो चली थी।
लगता था वे 'रात-भर ऐसे ही पैदल चलते रहेंगे, किंतु ऐसा नहीं
हुआ | एक पतली-सी गली के नुक्कड़ पर सुरभि रुक गई और उसमे
कहा--रहने दो इस नरक में तुम लोगों को जाने की जरूरत नहीं है।
पफिर घोड़ा हंसकर बोली--'तो फिर वही बात तय रही ?
उन दोनों ने भी हूंसकर कहा--'हां, वही वात तय है !!
इसके बाद अतीश और सदीप में भी विच्छेद हुआ। अलग होने के
पहले अतीश ने बधु से कहा--'भाज तो डाट पड़ेगी ?
मेरे बारे मे डांट-फटकार की बात नहीं उठती ।/'
'फिर भी आज तो स्पेशल बात थी ।
“परत, कितनी स्पेशल बातें पार कर गया हूं । मुझे तो सोच-सोचकर
आनन्द आ रहा है कि इस समय घर पर अभ्यागतों को भीड़ नहीं
होगी ।'
“रहने से भी क्या नुकसान है ?'
बाप रे, तू तो जानता है मुझे वह सव नीला-पीला, चकमके, क्षतमल,
» चिकन, सैटिन वगेरह देखते ही परेशानी होने लगती है। मेरा हृदय घंडकने
लगता है ।'
“यह तो है कितु तेरे भैया-भाभी *
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