प्रमेयकमल मार्त्तण्ड | Prameyakamal Marttanda

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्रस्तावना १९ टिप्पणी कर दी है, जिसकी परम्परा चलती रही। हाँ, म० म० गोपीनाथ कविराजने अवश्य ही उसे' सन्देह कोटिमें रखा है । भट्ट जयन्तकी समयावधि-जयन्त मंजरीमें धर्मकीतिके मतकी समा- लोचनाके साथ ही साथ उनके टीकाकार पधर्मोत्तकी आदिवाक्यकी चर्चाको स्थान देते हैं । तथा प्रज्ञाकरगुप्तके एकमेवेद ह्षैविषादाद्यनेकाकार- विवत्त पश्यामः तत्र यथेष्ट संज्ञा: कियन्ताम! (मिक्ठ राहुलजीकी वार्तिकालकारकी प्रेसकॉपी प० ४२९ ) इस वचनका खंडन करते हैं, ( न्यायमंजरी प्रृ० ७४ )। मिछ राहुलजीने टिवेटियन गुरुपरम्पराके अनुसार धर्मकीतिका समय ई० ६२५, प्रज्ञाकरगुप्तका ७००, धर्मोत्तर और रविगुप्तका ७२५ ईखी लिखा है । जयन्तने एक जगह रविगुप्तका भी नाम लिया है । अतः जयन्तकी पूर्वावधि ७६० 2, 1), तथा उत्तरावधि ८४० ४. 1), होनी चाहिए। क्योंकि वाच- स्पतिका न्यायसूचीनिबन्ध ८४१ 2 , 1), में बनाया गया है, इसके पहिले भी वे ब्रह्मसिद्धि, तत्त्वबिन्दु ओर तात्ययेटीका लिख चुके हैं। संभव है कि वाचस्पतिने अपनी आयक्षति न्यायकणिका ८१५ ई० के आसपास लिखी हो । इस न्याय- कणिका में जयन्तकी न्यायमंजरीका उल्लेख होनेसे जयन्तकी उत्तरावधि ८४० 0 . 1), ही मानना समुचित ज्ञात होता है | यह समय जयन्तके पुत्र अभिनन्द द्वारा दी गई जयन्तकी पूर्वजावडीसे भी संगत बेठता है । अभिनन्द अपने ' कादम्बरीकथासारमें लिखिते हैं कि- ह “भारद्वाज कुलमें शक्ति नामका गोड़ ब्राह्मण था। उसका पुत्र मित्र, मित्रका पुत्र शक्तिखामी हुआ । यह शक्तिखामी ककोंटवंशके राजा मुक्तापीड ललिता- दिल्यके मंत्री थे । शक्तिखामीके पुत्र कल्याणखामी, कल्याणखामीके पुत्र चन्द्र तथा चन्द्रके पुत्र जयन्त हुए, जो नवद्ृत्तिकारके नामसे मशहूर थे ५ जयन्तके अभिनन्द्‌ नामका पुत्र हुआ ।” कारमीरके कर्कोट-वंशीय राजा सुक्तापीड ललितादिद्यका राज्य कार ७३३ से ७६८ ै., 1), तक रहा है* । शक्तिखामी के, जो अपनी प्रोढ़ अवस्थामें मन्त्री होंगे, अपने मन्ह्रित्लकालके पहिले ही ३० ७२० में कल्याणखामी उतन्न हो चुके होंगे । इसके अनन्तर यदि ग्रत्मेक पीढीका समय २० वर्ष भी मान लिया जाय तो कल्याण खामिके रखी सन्‌ ७४० में चन्द्र, चन्द्रके ३० ७६० में जयन्त उतन्न हुए और उन्होंने रखी ८०० तकमें अपनी न्यायमंजरी” बनाई होगी । इसलिये वाचस्पतिके समयमें जय॑न्त इद्ध होंगे और वाचस्पति इन्हें आदर की दृश्सि देखते होंगे । यही कारण है कि उन्होंने अपनी आबश्तिमें न्यायमंजरीकारका स्मरण किया है । दकपनकेननाकघ ना फकामनाक कक 3५८3७७3» ५७७ ८५३००-३५-५०३५-३९५५ नमक 3५ कम“ कम» ५०» +#०म आप मकर काहननननम ५४९५» 3५+४+भ+मएधफफाकक ऊन ++4५4 कक 4» रआ मन के देखो, संस्क्ृतसाहित्यका इतिहास, परिशिष्ट (ख) ३४० १५।




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