मोक्षमार्ग की वास्तविक दृष्टि | Mokshamarg Ki Vastavik Drishti

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Mokshamarg Ki Vastavik Drishti by सुमेरुचन्द्र जी वर्णी - Sumeruchandra Ji Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अलावना ढ़ सम्रस्त आध्यात्मिक प्रन्थों पर सुनोध एब सरछ तथा भावषुर्ण तर्त तरुपशी पामिक विदेचनात्मक दीकाय की है। आपकी उ्यास्यान पड्ढति असरश पेतोड ई तत्तत को श्रोताओके मानस पटल पर अ्द्टित कर दूना आप ही जैसे असाधारण यक्ता की बचम-रचना चातुरी पर निर्भर है। आज्का सोनगढ़ परम आध्यात्मिक्ता एव तस्‍्वज्ञानका मुग़ढ हो रद्दा है। जैन समाज ही नहीं परन्तु जैनेतर्‌ समाज भी आपकी आप्यात्मिक तात्विक विवेचत्नाअसि पृणेव्या प्रभावित है। आपका तात्विक रहस्य उद्भाषन सत्यता एव तथ्यता से ओतप्रोत है । आपके सानिष्यसे गुप्रातप्रा म दिगग्पर धमे का जो प्रचार एव श्रसार दो रहा है बह इस बीसवीं सटीका एक अद्वितीय अनोखा एवं असा धारण कार्य है । श्ञापकी अघाघ थक्षुणण असौक्क एव अनुपस श्रायोप शमिक ज्ञानकी प्रमत्म प्रतिभा ने महत्तम श्रेप्ठतम एवं उत्तमोत्तम शिक्षितों के चेत'पट [पर आध्यात्मिक तत्त्यज्ञानवी एसी अनिर्देचनीय छाया ( छाप ) स्थापित कर दी है जो सदियों तक अविच्दधिन्न सतत्ति के रूपमे सचाल्ति होती रहेगी | अतणव हम आपके सुप्राह्म समुपादेय आध्यात्मिक दर्वज्ञानकी सुस्राराष्यता एवं समुपास्यता की अस्तरिक सद्भावना पूणेथ्रद्धा से नतमस्तक होते हुए आपके चिरायु होते की भ्री मस्निनेन्द्र प्रभु से भावना भाते है । (५,




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