भाक्तामर - कथा | Bhaktamar-katha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पस्तावना । द 0 मे ॥ क्तामर एक सत्र है। वैसे तो इसमें सभी तीय- है: करोंकी स्तुति की गई है, पर स्तोत्र-चयिता आचार्यने अपनी प्रतिज्ञाम लिखा है कि, “ से आदि जिनेद्धकी स्तुति करता हूँ।” इसीसे इस ब्ब्न- स्तोग्रका नाम * आविताथ-स्तोत्र * होने पर भी इसका प्रारंभ जो ' भक्तामरन्यणत-मीलि ' आदि दाव्द द्वारा किया गया है, इस कारण इसका नाम “ भक्तामर ” भी पड़े गया है । स्तोत्र बहुत ही उन्द्र और मर्मस्पशी शब्दोंमि रचा गया है। पद-पद.. और शब्द-शब्दम भक्तिस्‍रसका झरना बहता हैं। जैनसमाजस इसकी जो प्रतिष्ठा है वह तो है ही, पर इसे जो अन्य विद्वान देख पते हैं, वे भी इसकी सुन्दरता पर छुग्ध होकर कविकी शतसुखसे तारीफ करने ठगते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह स्तोत्र बहुत ही श्रेष्ठ है। भक्तामरस्तोत्र कह जगह प्रकाशित हो छुका है, पर आज हम इसे एक नये ही रूपमें प्रकाशित करनेकों समर्थ हुए हैं और हमें विश्वास “है कि मैनससाज हमारे इस परिश्रमका आदर भी करेगा । जैनसमाजमे भक्तामरस्तोत्र मेत्र-शास्रके नामसे भी प्रतिष्ठित है। कुछ विद्वानोंका मत है कि इसके प्रत्येक 'ोकमे पढ़ी खूबीके साथ मंत्रोंका भी समावेश किया गया है । हो सकता है, पर कैसे ! इस बातके बत- लानेको हम सर्वथा अयोग्य हैं। कारण हमारी मंत्र-शास्रमें विल्कुछ ही गति नहीं है। पर इतना कह सकते हैं कि ऐसी बहुतसी पुरानी _हस्तलिज़ित प्रतियाँ प्राप्त हैं, जो सौ-सी दो-दो सो वर्षेकी लिखी हुई के हैं और उनमें संत्र वगैरह सब छिखे हुए हैं। संत्रके साथ ही उन




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