रवीन्द्र - संगीत - सुधा भाग - 1 | Ravindra - Sangeet - Sudha Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1003 KB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ड़ गीतान्तर:
चनकेंसेशरमेगारहोलेशणी
तुम कैस सुर मे गा रह है। गुणी,
मैं ता अवाक् होके सुनूँ, केवल सुनूँ।।
सुर की आभा छाए भुवन में
सुर की हवा बहे गगन मं,
पत्थर दूटे व्याकुल वंगा मे,
बहे जा रही, सुर की सुरधुनि।1।
मन करता है, वैस॑ सुर मे गाऊँ,
कण्ठ म सुर, खांज नही मै पाऊ।
कहना है क्या, कण्ठ रूधे कहते,
हार मानकर प्राण मेरे रोयें
मुझ पर तुमने डाले कैसे फन्दे
चहुँ ओर मेरे सुर की जाली बुनी।।
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