रवीन्द्र - संगीत - सुधा भाग - 1 | Ravindra - Sangeet - Sudha Bhag - 1

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Ravindra - Sangeet - Sudha Bhag - 1  by दाऊलाल कोठारी - Daoolal Kothari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ड़ गीतान्तर: चनकेंसेशरमेगारहोलेशणी तुम कैस सुर मे गा रह है। गुणी, मैं ता अवाक्‌ होके सुनूँ, केवल सुनूँ।। सुर की आभा छाए भुवन में सुर की हवा बहे गगन मं, पत्थर दूटे व्याकुल वंगा मे, बहे जा रही, सुर की सुरधुनि।1। मन करता है, वैस॑ सुर मे गाऊँ, कण्ठ म सुर, खांज नही मै पाऊ। कहना है क्या, कण्ठ रूधे कहते, हार मानकर प्राण मेरे रोयें मुझ पर तुमने डाले कैसे फन्दे चहुँ ओर मेरे सुर की जाली बुनी।।




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