कविवर सुमित्रानंदन पंत और उनका आधुनिक कवि | Kavivar Sumitranandan Pant Aur Unaka Adhunik Kavi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
382
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काह्य रचनाएं १७
स्वतस्तता एवं महत्य नहीं दिया गषा है। लोकायतन' का दार्शनिक आवार
भी शस्यन्त न््पष्ट नहीं है। प्रकृति-चित्रण के लिए छकब्रि ने अनेक स्थल खोज
लिए है । प्रड्धति का झआलग्बन रूप में चित्रण द्वप्टव्य है --
फागुद में फूले बन के श्रग
डाल पात में छाग्रे नवरंग,
सन की चूनर रंग ले, सजनी,
होली ऐलेगी साजन संग !
मधु का गंघ संदेशा पाकर,
लोटे घिछड़े प्रमर छोड़कर,
ध्रलि, निर्मोही इ्याम सन श्राये
किसको सेंद बांह भर।
कलापक्ष की दृष्टि से भाषा महाकाव्य की गरिमा के अनुकूल होते हुए भी
सर्वथा उपयुकत नहीं है | इसमें सहजता का अभाव है । अनेक स्थलो पर पारि-
भाषिक्ष छब्दों का प्रयोग किया गया है, बथा--चेतन, झ्रारोहरण, श्रवरोहरण
इत्यादि । सारा महाकाव्य तुकान्त सात्रिक छन्दों में लिखा गया है। प्रधानतया
पद्धरि, पादाकुलक, सखी, राधिका इन्दों को अपनाया गया है। पंत जी ने
लोकायतन' में दह्पना-प्रधान अ्लंकारों को ही रखा है । उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा,
प्रत्युक्ति श्रादि अलंकार प्राय. प्रयोग मे लाये गये हुँ | डॉ० प्रेमलता बाफना ने
इसके शिल्प पर विचार करते हुए लिखा है--“'अन्तत: हम कह सकते हैं. कि
गी त्र घली का निर्माण करने बाला झपने आप में एक
लोकायतन काव्य अपनी स्वतन्त्र शेली का निर्माण करने बाला अपने आप में एक
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रचना के सम्यकू अध्ययन के लिए दर्षो के श्रव्यवस्ताय, लगन और एक गहरी
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समझ के साथ ही अपने इतिहास, स्वतस्थता-सम्राम, स्वातन्त्योत्तर नैतिक छास
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और कवि पत दी विराद आात्या सूजननधीलता झ्लीर लोक-शघुभेच्छा को समझता
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अत्यन्त आदश्यक है। यह इति महाकृबि पंत के सम्पर्ण मानसिक दिक्राम और
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