कविवर सुमित्रानंदन पंत और उनका आधुनिक कवि | Kavivar Sumitranandan Pant Aur Unaka Adhunik Kavi

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Kavivar Sumitranandan Pant Aur Unaka Adhunik Kavi by कृष्णदेव शर्मा - Krashna Dev Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काह्य रचनाएं १७ स्वतस्तता एवं महत्य नहीं दिया गषा है। लोकायतन' का दार्शनिक आवार भी शस्यन्त न्‍्पष्ट नहीं है। प्रकृति-चित्रण के लिए छकब्रि ने अनेक स्थल खोज लिए है । प्रड्धति का झआलग्बन रूप में चित्रण द्वप्टव्य है -- फागुद में फूले बन के श्रग डाल पात में छाग्रे नवरंग, सन की चूनर रंग ले, सजनी, होली ऐलेगी साजन संग ! मधु का गंघ संदेशा पाकर, लोटे घिछड़े प्रमर छोड़कर, ध्रलि, निर्मोही इ्याम सन श्राये किसको सेंद बांह भर। कलापक्ष की दृष्टि से भाषा महाकाव्य की गरिमा के अनुकूल होते हुए भी सर्वथा उपयुकत नहीं है | इसमें सहजता का अभाव है । अनेक स्थलो पर पारि- भाषिक्ष छब्दों का प्रयोग किया गया है, बथा--चेतन, झ्रारोहरण, श्रवरोहरण इत्यादि । सारा महाकाव्य तुकान्त सात्रिक छन्दों में लिखा गया है। प्रधानतया पद्धरि, पादाकुलक, सखी, राधिका इन्दों को अपनाया गया है। पंत जी ने लोकायतन' में दह्पना-प्रधान अ्लंकारों को ही रखा है । उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, प्रत्युक्ति श्रादि अलंकार प्राय. प्रयोग मे लाये गये हुँ | डॉ० प्रेमलता बाफना ने इसके शिल्प पर विचार करते हुए लिखा है--“'अन्तत: हम कह सकते हैं. कि गी त्र घली का निर्माण करने बाला झपने आप में एक लोकायतन काव्य अपनी स्वतन्त्र शेली का निर्माण करने बाला अपने आप में एक उदाइर शर्त हक «७9118 दो ख्धना थ शा का, जद मा अंकननक उदाहरण हू 1 लागू सह के घक्तका में कहा जा सकता हल ब्न्न्ग्ह्तु महान्‌ ध््ज्ज्र मे सम्यकृ ग्रध्ययन जे दर्षो के व्यवस गन पे रचना के सम्यकू अध्ययन के लिए दर्षो के श्रव्यवस्ताय, लगन और एक गहरी भेभा के साथ ४ झगने ने दा: शक का अन्य ला ज्म्ज्क बोध बात बी िड.. ध्द्क समझ के साथ ही अपने इतिहास, स्वतस्थता-सम्राम, स्वातन्त्योत्तर नैतिक छास कोर बट दप्री। दिदशाद आसच्या स्जनमधीनता हर लोक-धर्भेद स्प्रे च्ा और कवि पत दी विराद आात्या सूजननधीलता झ्लीर लोक-शघुभेच्छा को समझता काम, ड््‌ 440०4०-+नयक अल >क पकम्नएा-माएए हक अमालाक है कामायक, के जज श््प व तो पाप दकास रु हर अत्यन्त आदश्यक है। यह इति महाकृबि पंत के सम्पर्ण मानसिक दिक्राम और ज>जस>०-2८कन->नक, 5 अर सी जननर.3.3 ऑन जनम मननमाट-नन्क भ शर्म न्‍ीय 7“ 1 >> हे अआल#कातक हस्‍अन्‍ जिन्तन शीदता छा एक सबदलन हैं। भारतीय चसना' के मंगल-ऋलश में 71 ह आर है... ३७6७०. अयडलः ऋ 2 ंसंज॥ च्न्य् दिक्लास हःः छाई दान्पन आकण्कल के” कक न्जा नजर अल 1 वखिड्द्-मालद का अन्तर वत्राबह्य दक्ास का पारदत्पना इसमे साथक हइ हूं 1 *<«* 5




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