गद्य भारती | Gadh Bharti

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Gadh Bharti by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुदती द एक नये ढंग का निबंध है । इसे अग्रेंजीवाले तो स्केच कहेंगे पर हिन्दी मे दिकारी लेख, रेखानिवध अथवा केवल “निवघ' ही कई सकते है । इस निबंध से उस संघर्ष का चित्र है, वह लड़ाकू और अजेय प्रद्नत्ति अकित है जो मानव मार्च का हृदय गुदगुदा देती है--वच्चें बूढ़े, स्त्री-पुरुष सभी उसका स्वाद लेते हैं। प्रकृति और घटना के शब्दचित्र और मनोविज्ञान से इस मगया-साहित्य में कुछ और ही वात आ जाती है-न किया शिकार भी आनन्दानुभूति का कारण बन जाता है। श्रीराम दार्मा इस साहित्य के जन्मदाता और लोकप्रिय लेखक है | स्वर्गीय श्रालोचक पश््सिहद शर्मा ने लिखा था--आप प्रसिद्ध और सिद्ध--अचुक निशाना लगानेवाले शिकारी हैं। आपके लेखों का भी निशाना सीधा पाठकों के दृदयों पर जाकर बैठता है । पढ़नेवाला लोट-पोट हो जाता है । अपने ढंग के आप एक ही लेखक हैं ।' *'**। “ ” । आपकी वर्णुन-दौंली बदी सजीव, भावविश्लेषण मनोविज्ञानसम्मत और भाषा विषय के अनुरूप बड़ी सुघड़ होती है । वस्तु और शैली दोनो की दाद उन्हें मिछ चुकी है, अब कृति में प्रभाव की गंभीरता देखना है ? क्या यह तात्कालिक प्रशसा उसे कालाश्रित कीर्ति दे सकेगी १ सच्चा उत्तर तो काल ही देगा पर आलोचक-बुद्धि उसे स्थायी सपत्ति मानती है क्यांकि उसमें उस प्रकृति का चित्र है जो चिरनवीन रहती है । इस प्रकार लिबघ के सभी गुण इस लेख में हैं, पर कुछ दोष खटकते है | पहला दोष है उपदेदा और प्रचार की बत्ति लेख के आरभ में ही यह बेठुका उपदेश दर्शन देता है । कलाकार का काम है दृढ़संकल्प होकर चित्र खींचना न कि विकल्प या विचार करना । यह दूसरा काम आलोचक का है । दूसरी खटकनें




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