श्री देववंदन निर्णय पताका | Shri Devavandan Nirnay Pataka

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Shri Devavandan Nirnay Pataka by धनविजय जी महाराज - Dhanavijay Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्राचरणा निर्णय प्रथम प्रस्ताव, एफ समाधान यहदेँ कि पूर्वंघर तथा वहुभ्ुतोका किया मथोमे यह छेखहै कि उत्सग मार्गम तो साध भावक दोनोकोौ राइप- तिक्रमण किये ,बाद तथा देचसी प्रतिक्रमणकी- आयद्यर्म ज्षि भमंदिरमें जाकेदी अपना योग्य अवस्थाका “देववंदंन कर- शा और ,अपवाद -मार्गमम कोइ कारण परत्व जिनमंदिर्मे चांदनेका योग न हुवा तो साध्ठ तो अपने स्थान स्थाप- 'नाजीके भागे तीन श्रइकी देवचेंदना कर प्रतिक्मण करे कौर भ्रावकः पौषधशालाम सामायिक सहित प्रतिक्रमणमें तो तीनथुइकी देघबंदना करे, और पूजा प्रतिष्ठादि कारण परत्व जो सामायिक रहित. प्रतिक्मण करना 'होय “तो चार शुदकी देवचंद्ना फर प्रतिक्रमण 'करे; असी: बहुश्रु- 'तौकी आचरणा मजब यहां उत्सर्गंस तिसरी पूज़ाके नंत- « देववंदन .करनेख प्रतिक्रमणकी आद्य्म घिशेष 'देवदंदन करनेका भ्रयोज्ञन 'नही, घास्ते यहां भाद्धदिनफ्रय' सूचद- तिम सामायिक॑ लियेवाद देवचे दून करनेफा फथन नहीकिया. - ' ; पृथपक्ष;-वाहजी बाद | अतिकमण . पोपषधादिक भी सामा(येक रद्दित होते हैं! सामायिक लिये- घिना' प्रतिक्र- “मण पोषधादि करनां खुननेम.भी-आयः नही तो करनेकी बात तो कहां रही ! ! उत्तशपक्ष:-हांजी हां ) फारण परत्व प्रतिक्रमण पो- पधादिकर्ी सामायिक रादित दोतेहे, तुमारे.कानोम मत - पक्षकी ढांक घलगईः है तिलिति सुना नही होगा, .जोःमत- पक्षकी ढांक अलग करके शास्त्र श्रवण करोर्गेतो. खुननेमे “आधवेगाफि श्री घिजयराज्ञा असयकुमारादिकोने!झपने विघन विनाश आर संसारिक कार्यसिद्धिके लिये 'सामायेक रहित पोपधादेक - कियेह, जो सामायिक लिये घिना >पीषधादि




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