औरंगजेब | Aurangazeb
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
478
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
अध्ययन गम्भीर और सम्पूर्ण था, यह बात उसके पत्नोमे स्पष्टतया
भऋलकती है। हर समय वह उनके उपयुक्त उदारण देने को तैयार रहता
था । अरबी व फारसी भाषाओपर उसका पूरा पुरा अधिकार था, तथा
उन भाषाओके पडितकी तरह उन्हे लिख श्रौर बोल सकता था | उस
समय तक मुगल-दरवारके घरेलू जीवनमे हिन्दुस्थानीका प्रयोग होने
लगा था, यही उसकी मातृभाषा भी थी | उसे हिल्दीका भी साधारण
शान था। साधारण बातचीतमे वह हिन्दीकी लोक-प्रिय कहावतों
को भी काममे लाता या |
निरर्थक-काव्य साहित्यकी औरमजेब उपेक्षा करता था।
प्रशसात्मक काव्यसे उसे घृणा थी । उपदेशात्मक, सुसम्मत कविता
उसे पसन्द थी | धामिक ग्रन्थ और विवेचनाएँ, कुरानकी टीकाएं,
मुहम्मदके जीवनसम्बन्धी वृतान्त, इमाम मुहम्मद गजलीकी कृतिया
मुनीर-निवासी शेख शर्फ याहिया और शेख जेनुद्दीन कुतुब मुही
शीराज़ीके चुने हुए पत्र तथा इसी प्रकारके श्रन्य लेखकोकी रचनाएँ
वह बडे प्रेमसे पढता था ।
चित्रकारी उसे कभी भी पसन्द न रही थी । श्रौर अपने राज्य-
कालके दस वर्षकी पूर्तिके उपलक्षमे होनवाले उत्सवके समय उसने
गायन विद्याको अपने राज-दरवारसे निकाल वाहर किया था।
चीनी मिट्टीके सुन्दर बर्तन उसे बहुत ही प्रिय थे । अपने पिताके
समान स्थापत्य कलासे उसे कोई प्रेम न था। अपने राज्य-कालमें
उसने कोई भी उल्लेखनीय सुन्दर मसजिद,“ सुविशाल भवन या
* द्विल्लीके लाल किलेकी मोती मस्जिद हम एक उल्लेसनीय झप-
बाद प्रवस्थ मिलता है । १० दिसम्बर, १६५७ ई० को इसकी नीव डाली गई
ओर पाच वयम बनकर पूरी हुईं। इसके बनानेमे एक लास साठ हजार
रुपये व्यय हुए थे (आ० ना०, धृ० ४६८) । लाहौरम॑ ओौरगज्ञेबकी बनवाई
मसजिद उस शहरमे सव-सुन्दर नही है। झपनी वेगम दिलरस वानूकी कब्रपर
औरगाबादम उसमे जा मकबरा बनवाया था, वही उसके शझासन-कालकी सब-
श्रेष्ठ इमारत है।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...