औरंगजेब | Aurangazeb

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Aurangazeb by यदुनाथ सरकार - Jadunath Sarkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) अध्ययन गम्भीर और सम्पूर्ण था, यह बात उसके पत्नोमे स्पष्टतया भऋलकती है। हर समय वह उनके उपयुक्त उदारण देने को तैयार रहता था । अरबी व फारसी भाषाओपर उसका पूरा पुरा अधिकार था, तथा उन भाषाओके पडितकी तरह उन्हे लिख श्रौर बोल सकता था | उस समय तक मुगल-दरवारके घरेलू जीवनमे हिन्दुस्थानीका प्रयोग होने लगा था, यही उसकी मातृभाषा भी थी | उसे हिल्दीका भी साधारण शान था। साधारण बातचीतमे वह हिन्दीकी लोक-प्रिय कहावतों को भी काममे लाता या | निरर्थक-काव्य साहित्यकी औरमजेब उपेक्षा करता था। प्रशसात्मक काव्यसे उसे घृणा थी । उपदेशात्मक, सुसम्मत कविता उसे पसन्द थी | धामिक ग्रन्थ और विवेचनाएँ, कुरानकी टीकाएं, मुहम्मदके जीवनसम्बन्धी वृतान्त, इमाम मुहम्मद गजलीकी कृतिया मुनीर-निवासी शेख शर्फ याहिया और शेख जेनुद्दीन कुतुब मुही शीराज़ीके चुने हुए पत्र तथा इसी प्रकारके श्रन्य लेखकोकी रचनाएँ वह बडे प्रेमसे पढता था । चित्रकारी उसे कभी भी पसन्द न रही थी । श्रौर अपने राज्य- कालके दस वर्षकी पूर्तिके उपलक्षमे होनवाले उत्सवके समय उसने गायन विद्याको अपने राज-दरवारसे निकाल वाहर किया था। चीनी मिट्टीके सुन्दर बर्तन उसे बहुत ही प्रिय थे । अपने पिताके समान स्थापत्य कलासे उसे कोई प्रेम न था। अपने राज्य-कालमें उसने कोई भी उल्लेखनीय सुन्दर मसजिद,“ सुविशाल भवन या * द्विल्लीके लाल किलेकी मोती मस्जिद हम एक उल्लेसनीय झप- बाद प्रवस्थ मिलता है । १० दिसम्बर, १६५७ ई० को इसकी नीव डाली गई ओर पाच वयम बनकर पूरी हुईं। इसके बनानेमे एक लास साठ हजार रुपये व्यय हुए थे (आ० ना०, धृ० ४६८) । लाहौरम॑ ओौरगज्ञेबकी बनवाई मसजिद उस शहरमे सव-सुन्दर नही है। झपनी वेगम दिलरस वानूकी कब्रपर औरगाबादम उसमे जा मकबरा बनवाया था, वही उसके शझासन-कालकी सब- श्रेष्ठ इमारत है।




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