प्रभोधसागर | Prabodhasagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ २ पुरुपाथ सिध्युपाव को सुवोधिनी नामक्की एक विस्तृत और स्वतेत्र टीका लिखी 6 1| आपको न्यायालुकार, वादीसकेसरी, विद्या- वारिधि, धर्मवीर आदि पदवियां शराप्त हं। इस समव आपकशश्री. गो. दि. जन सिद्धांत विधाल्य के सहावक मंत्री हैं ओर मारत वर्षीय दि. जन महासभा के मुखपत्र जेनाजट के सूत्रघार सम्वादक हैं ६ भाई श्रीलालजी-आप जोहरी हैं जवाहरातका काम अच्छा जानते हैं । इस समय आप कलकत्ता में व्यापार करते हैं । अनुदादकने महाविद्यालय मथुरा ओर संस्कृत विद्याल्य बम्बईम वि दयाध्ययन किया है| विद्याध्यवन करनेमें न्वायवाचस्पति वा. ग. केसरी पं गोपाल्दासली, पे. पत्नाठललजी वाकलीवाल, पं. धन्नाछाकजी काशलीवाल की विशेष कृपा रही है । विद्याध्ययन के चाद प्रायः: अध्यागत कम में ही ढगे हुए हैं; साथम वहुतसी समाजसेवा भी करते रहे हैं। श्री भारत वर्षीय दि० जन महासभाने आपकी सेवासे प्रसन्न होकर धर्नेरन की उपाधि प्रद्यान की है | 1.५० आपने अबतक नीच लिखे ग्रेथाका अनुवाद किया हैं-आदिपुराण, उत्तपुराण, शांतिपुराण, सागार धर्मावत, वमप्रेश्नोत्तर, प्रश्नोत्त आ्रावका - चार, जिनशतक, पान्रकेंसरीस्तोच्र, चारित्रसार, संशयिवदनविदारण, गौतम चरित्र, साससमुच्चय, सुभो॥्र चरित्र, सक्तिमक्तावडी, दशलाक्षणिक जयमारू, तत््वानुञासन, वगग्बमणिमाला, द्वाद्यानुप्रेक्षा, प्रवोधसार, चतुर्विशति सघान, भादि । इनके सिवाबव आड्िपुगण समीक्षा की परीक्षा दो भाग, परोड्शसंस्कार, वाल्योध जन घममे ३-४ भाग, क्रिया मंजरी आदि आर भी छोट मा हे । : “इस समय पेडितलीके कुटुंचम २ कम्बाएं ओर एक चि. राजेन्द्र कुमार पुत्र है । राजजी सखाराम दोशी र सोलापूर,




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