जैनियों की तरक्की | Jainiyon Ki Tarakki
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
101
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका
- जिस जैन समाज की पूर्वकालीन स्थिति ढिती
जैसी दिनों दिल घन धान्य वलबुद्धि तेम का ऊर
बुद्धि होती थी उसही जेन समाज की स्थिति आज हीय
कृष्ण पक्षीय भतित्रदा के चन्द्र जेसी घनधान्य वर्लबुद्धि
आदि में हाति होती हुई दिखाई देती है, ज्यों ज्यों चन्द्र
गति में फेर पढ़ता है, त्यों त्या उस की कछाओं में हानि
होती है तदबत् जैनसमाज की भी जैसी जैसी गति होते
है वैसी ने
अटल नियम,
हुआ करती है,
अब देखना होगा कि वे कोन से
ओर इंद्धि में निषिच् भूत * होते है भ5
लिखकर इतना ही लिखना ठीक होगा कि आप के कर के
मो में रही हुई, “ जेनियोंदी तरकी ” नामक पुस्तव
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उस से हानि हृद्धि हुवा करती है, इस से यह
सिद्ध होता है कि, सकारण ही काय्य की को
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कारण हैं कि जो हानि
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प्रिय पाठकों | ज्यादा
जन समाज में अनेक मत पन्यथ मौजूद ह उनमें से किर्स
भी एक मत पन्थ विशेष की निंदा न करना यह नियम इर
पुस्तक में खास ध्यानपूर्वक आदि से अंत तक रक््खा हे
इस पुस्तक मे घस्तावोचित भाषाका ही उपयोग किस
गया हे, |
इस पुस्तक में ढंके को चोट से यह सिद्ध किया गर॑|
कि जेन समाज यदि उन उन हानि इद्धि के कारणों व
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