वल्लभ - वाणी | Vallabh - Vani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
468 KB
कुल पष्ठ :
78
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साधु
|
यथार्थ घाव को कोई नहीं कहा । तुम्हारा साधु लिदाज
एरते ह-- और तुम साधु का। यही प्ारण है कि सुधार नहीं
छेता | जहाँ “ तिन्नाण तारयाण॑ ” था वहां अब “डुयाण
छोषियाण ” हो गया । (१)
[ 5३ ]
आज यदि कोई श्रावफ साधु फो कद्दे कि-- भद्दाराज
थाष अ्भुक गल॒दी कर रहे व तो साधु का वश चल्ने तो डण्डा
लेकर पीछे लग जायेँ। साधु नहीं सोचते कि हम में अवगुण
है तो उसको सुधार । (२)
पुल ०, जा
साधु न तो किसी फो भाप देता है और न किसी को
यरदान दी । (३)
[5४
उस समय भेरे जैसे खाऊ लोग साधु नही बने थे । आज
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