वल्लभ - वाणी | Vallabh - Vani

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Vallabh - Vani by जैन आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरी - Jain Aacharya Shri Vijay Vallabh Suri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साधु | यथार्थ घाव को कोई नहीं कहा । तुम्हारा साधु लिदाज एरते ह-- और तुम साधु का। यही प्ारण है कि सुधार नहीं छेता | जहाँ “ तिन्नाण तारयाण॑ ” था वहां अब “डुयाण छोषियाण ” हो गया । (१) [ 5३ ] आज यदि कोई श्रावफ साधु फो कद्दे कि-- भद्दाराज थाष अ्भुक गल॒दी कर रहे व तो साधु का वश चल्ने तो डण्डा लेकर पीछे लग जायेँ। साधु नहीं सोचते कि हम में अवगुण है तो उसको सुधार । (२) पुल ०, जा साधु न तो किसी फो भाप देता है और न किसी को यरदान दी । (३) [5४ उस समय भेरे जैसे खाऊ लोग साधु नही बने थे । आज




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