अथ पञ्चमहायज्ञाविधिः | Ath Panchmahayagyavidhi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
60
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सन्ध्योपासनम् ॥ १७
हं/ए४++ जज 933२ सभा > >> २3222 2०222 न्0 >>
एप एवैतेपां प्रकाशकत्वाद्वाह्मभ्यन्तरयोश्व्षप्रकाशको विज्ञा-
नमयो विशापकश्चास्ति । अतएव ( मिन्नस्य ) सर्वेषु द्रोहराहि-
तस्य मल॒ष्यस्य सर्य्थलोकस्प प्राणस्य वा ( चरुणस्य ) वरेघु
भ्रेप्टेपु कम॑छ ग॒णेपर वर्समानस्य च ( अग्नेः ) शिल्पविद्याहेतो
- रूपग्रुणदाहप्रकाशकस्य विद्युतो भ्राजमानस्यापि चच्चु; सर्वसत्यो-
पदेष्टा भ्रकाशकश्च ( देवानाम्) सर दिव्यगुसवर्ता विदुपामेव
हृदये ( उद्गात् ) उत्कएतया प्राप्तेरित प्रदाशको या तदेव ब्रह्म
( चित्र ) अरूतस्वरूपम् ॥ अच् प्रमाणम् आश्चर्य्यों वक्ता कुश-
लोध्स्य लब्धारुएचयो जशाता कुशलानुशिए्ट ॥ कठोपनि०
घन्की २। आश्चय्येस्वरुपत्वादुत्रह्मण॒स्तदेव ब्रह्म सर्चेर्ण चास्माक
( अनीक ) सर्वदुःखनाशाओ कामक्रोबादिशज्वविनाशार्थ वल-
मस्ति तद्विहाय मनुष्याणां सर्वद्खकरे शरणमन्यज्नास्त्येवेति
चेद्यम् । ( स्वाह्य ) अथात्र स्वाहाशब्दार्थ प्रमाएं निरुक्तकारा
आहु: । स्वाहा कृतयः स्वाहेत्येतत्सु आहाति वा सवा बागाहेति
स्त्रे भ्राहेति वा स्वाहुत॑ हविज्वुद्वेत्िति या तासामेया भच॒ति ।
निरू० अ० ८। खें० २० | स्वाह्शब्दस्यायमर्थ: (सु आदति वा )
(सु) झुप्ठु कोमल मधुरं कल्याणुकरं प्रिय बचने सर्वेर्भनुप्येः
सदा वक्तत्यम् ( स्वावागाहेति वा ) या स्वकीया चाग् ज्ञानमध्ये
चत्तेत सा यदाह ठदेव वागिन्द्रियिणय सद्देदा वाच्यम्। (स्व
पभाहेति वा ) स्व स्वकीयपदार्थ प्रत्येत्र स्व॒त्व बाच्यम्। न पर-
पदार्थ प्रति चेति ( स्वाहुत ० ) खप्हरीत्या सेस्कृत्य संस्कृत्य
हथिः सदा होतव्यमिति स्वाहाशब्दपर्य्याथा्थो: स्वमेव पदार्थ
प्रत्याह व्यय सर्चदा सत्य चदाम इतिन कद्माचित्परपदार्थ प्रति
मिथ्या चदेमेति ॥ ३ ॥ ते
॥ भाषाथे ॥
( चित्ने देचाना० ) ( सूर्य्य आत्मा ) प्राणी ओर जइ जगत् का जो
२
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