शांकर वेदान्त : एक अनुशीलन | Shankar Vedant Ek Anushilan

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Shankar Vedant Ek Anushilan by रमाकान्त आंगिरस - Ramakant Aangiras

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अद्वतवेदान्त में प्रस्थानत्रयी : एक समीक्षण / १५ १८, मधुव्वाता ऋतायते मधुक्षरन्ति सिन्धव:*** -- यजुबेंद १३-२७ १६, बृहदारण्यक 3०, २-४-५ २०. “आत्मा वा भरे द्रष्टव्य: मन्तव्य: निदिध्यासितव्य:” “--बह॒दारण्यक उ० ५-६-६ २१. “बाल्यं च पाण्डित्यं च निविद्याथ मुन्ि:” - बह॒वारण्यक 3०, पृ० ३२१, अद्वत आश्रम प्रकाशन, कलकत्ता, १६७४ २२. “विजातीय देहादिप्रत्ययरहिताद्वितीयवस्तु सजातीयप्रत्ययप्रवाहों निदि- ध्यासनम्‌ ॥। --प० १०८, बद्वेत आश्रम प्रकाशन, कलकत्ता, १६७४ २३. श्रीमदभगवद्‌ गीता, अध्याय ४, श्लोक १, २, ३ २४. “यत्पुनरुक्त॑ श्रवणात्पराचीनयोमेननत्निदिध्यासनयोदर्शनाद्‌ विधिविशेष- त्वमृ*** -अहासुत्र शां० भा० ९-१-४ २५, वेदस्य हि निरपेक्षं स्वार्थें प्रामाण्यं रवेरिव रूपविषये । २६. “ओं नमो ब्रह्मविद्यासंप्रदायकतृ भ्यो वंशऋषिश्यो नमो गुरुभ्य:” --बह॒दारण्यक उ० भा० । न आत्मविदः कत्तंव्यं लोकसंग्रहूं मुकत्वा' गीताभाष्य ३-३६ तथा दे० येरिमे गुरुभिः पूर्व पदवाक्य प्रमाणत: । व्याख्याता: सर्ववेदान्तास्तान्तित्यं प्रणतो&स्म्यहम्‌ ।। “-सैतिरीय उ० भाष्यारमभ्भ ।




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