शांकर वेदान्त : एक अनुशीलन | Shankar Vedant Ek Anushilan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अद्वतवेदान्त में प्रस्थानत्रयी : एक समीक्षण / १५
१८, मधुव्वाता ऋतायते मधुक्षरन्ति सिन्धव:*** -- यजुबेंद १३-२७
१६, बृहदारण्यक 3०, २-४-५
२०. “आत्मा वा भरे द्रष्टव्य: मन्तव्य: निदिध्यासितव्य:”
“--बह॒दारण्यक उ० ५-६-६
२१. “बाल्यं च पाण्डित्यं च निविद्याथ मुन्ि:”
- बह॒वारण्यक 3०, पृ० ३२१, अद्वत आश्रम प्रकाशन, कलकत्ता, १६७४
२२. “विजातीय देहादिप्रत्ययरहिताद्वितीयवस्तु सजातीयप्रत्ययप्रवाहों निदि-
ध्यासनम् ॥। --प० १०८, बद्वेत आश्रम प्रकाशन, कलकत्ता, १६७४
२३. श्रीमदभगवद् गीता, अध्याय ४, श्लोक १, २, ३
२४. “यत्पुनरुक्त॑ श्रवणात्पराचीनयोमेननत्निदिध्यासनयोदर्शनाद् विधिविशेष-
त्वमृ*** -अहासुत्र शां० भा० ९-१-४
२५, वेदस्य हि निरपेक्षं स्वार्थें प्रामाण्यं रवेरिव रूपविषये ।
२६. “ओं नमो ब्रह्मविद्यासंप्रदायकतृ भ्यो वंशऋषिश्यो नमो गुरुभ्य:”
--बह॒दारण्यक उ० भा० ।
न आत्मविदः कत्तंव्यं लोकसंग्रहूं मुकत्वा' गीताभाष्य ३-३६ तथा दे० येरिमे
गुरुभिः पूर्व पदवाक्य प्रमाणत: ।
व्याख्याता: सर्ववेदान्तास्तान्तित्यं प्रणतो&स्म्यहम् ।।
“-सैतिरीय उ० भाष्यारमभ्भ ।
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