महाभारतम | Mahabharatam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
656
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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मद्दाभारत |
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ते दरृष्ठा दीनमनस गतसत्त्वं नरेश्वरम् ।
भूम। शोकसमाविष्टा। पाण्डवा। सम्ुपायविदशन | ६॥
राजा तु धृतराष्ट्श्व पत्नष्ञोकाभिपीडित। ।
वाक्पमाह महावुद्धि। प्रज्नाचश्षुनेरेश्वरस
॥1७१॥
उत्तिष्ठ कुरशादूल कुरु कार्य मनन्तरम् ।
पल्लत्रधम्रण कोनतेय जितेयमवनी त्वया
1 ८॥]
सुद्व भोगान्श्रातामिश्र सुहृद्धिश्व मनोनुगान |
शोचितव्यं न पठ्यामि त्वया धर्मस्नतां वर
॥ ९॥
शोचितव्यं मया चेव गान्धायों व महीपते |
ययो। पश्नशातं न्ट स्व्तलव्ध थथा घनम्
1 १० ॥
अछ्ुत्वा हितकामस्य विदुरस्य महात्मन।
घाक्यानि सुमहाधथाने पारतप्यामसि दुमाति। ॥ ११॥
उक्तवान्विदुरों यनन््माँ धमात्मा दिव्यदशन।।
दुर्धोघनापराधेन कुल ते विनशिष्यति
॥ १२ ॥
स्वस्ति चेदिच्छसे राजन्कुलस्य कुरु मे चचः ।
कि “आप ऐसा न करिये।? हे महा-
राज ! उस समय पाण्डवगण उस नर-
नाथ धर्मपुत्र युधिष्ठिरको भूवलशायी,
शोकाते, दीनचित्त, ज्ञानरादित और
लम्पी सांत्त छोडते हुए देखकर अत्यन्त
शोकयुक्त होंके बेठ गये | ( २--६ )
अनन्तर पृत्रशोक्स सन्तापित प्रज्ञा-
चन्त महावुद्धिमान् राजा धतराष्ट्र नर-
नाथ युधिप्टिरसे बोले | है कुरुशादूल |
तुम उठके इसके अनन्तर कर्तव्य कर्मों
को सम्पादन करो | दे कुन्तीनन्दन 1
तुमने क्षत्रियधर्मके अनुसार इस प्रथ्वी-
की जीता हैं, इसालिये सुहृर्दों और
भाष्येकि सहित हसे मोग करो । है
!
!
|
घार्मिकश्रेष्ठ ! इस समय शोक करना
उचित नहीं है, क्यों कि तुम्हारे लिये
घोकका कारण कुछ भी नहीं देखता हूं।
हैं महीपाल 1 सपनेमें मिले हुए धनकी
भांति जिनके एक सो पूत्र नष्ट हुए हैं,
उस गान्धारी ओर मुझे ही शोक करना
उचित है। है महाराज ! मेने दुरवृद्धिके
वशमे होकर मद्दात्मा द्वितिपी बिदुरके
मह॒त् अथयुक्त वचनको न सुननेसे इस
समय परितापित होता हूं । (७-११)
द्व्यदर्शी मद्दात्मा विदुरने मुझसे
कद्दा था, “ है महाराज 1 दुर्योधनके
अपराधसे ही आपका श्रेष्ठ कुल नष्ट
होगा | यदि आप अपने कुलका कुश्चल
[१ अश्वमेधिकपर्व
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